कविता हुई
ह्रदय के किसी कोने से निकली कोई आह, कविता हुई।कोई मिलकर किसी से अधूरा रक्खा निबाह,कविता हुई।किसी दम का जब […]
ह्रदय के किसी कोने से निकली कोई आह, कविता हुई।कोई मिलकर किसी से अधूरा रक्खा निबाह,कविता हुई।किसी दम का जब […]
कहाँ मांगने जाओगे स्नेह भला उधार सखे!मोम के पुतले भरे पड़े हैं पत्थर है संसार सखे।सूखे पेड़ के नीचे बोलो
साँस-साँस पे घुटन लिखा हैबात-बात पे हारयही जगत की रीत है भईयाकर ले तू स्वीकारठोकर खा खा के है तुमको
ऐसे कदम बढ़ाओगे तो क्या पाओगे? हिम्मत हार जाओगे तो क्या पाओगे? सब मिलना आसान है, जीवन भले संग्राम है।
बह चला जब हिम से मैं पर्वतों को चीर कर,राह में फिर रूप कितने थे मुझे धरने पड़े।झरना, नदी, सिंधु
बूंद बन के बादलों से गिर कभी धरा पेकभी बन निशा की दीप टिमटिमाताकभी बन सूरज सा तेज जलानेवालाकभी शाम
मैने मान लिया है कि जीवन अकेले चलने का नाम है और मुझे इस बात की बेहद खुशी है।जब आपके
जो भी मिलता है,खो जाता है।आँखों को धोखा हो जाता है।ठेस लगने पे सजग होते हैं पाँव,एक आदमी और फिर
दिलों में हौसला नस-नस में और खून भरना है।जहाँ मुश्किल हो चलने में उसी राह से गुजरना है। मैं कुछ
जीवन का सार ही यहीं है।जीवन में सार ही नहीं है।जिसे जीतने का सौक नहीं,उसकी कोई हार ही नहीं है।