मुक्तक
ज़मीं को आसमाँ जितना जहाँ में कौन समझेगा।मुझे मालूम है लोगो वो मेरा मौन समझेगा।जिसे मैं दिल समझता हूँ जिसे […]
ज़मीं को आसमाँ जितना जहाँ में कौन समझेगा।मुझे मालूम है लोगो वो मेरा मौन समझेगा।जिसे मैं दिल समझता हूँ जिसे […]
कि हम चाहें अगर तो इस जहाँ में क्या नहीं होता।मगर दिल बे- ग़रज़ कोई यहाँ अपना नहीं होता।सितम ये
कित’ने हिस्सों में बट गई ज़िंदगी।किस से जा के लिपट गई ज़िंदगी।वक्त सोचा था बीत जाए मगर,वक्त कटना था कट
1. दिल को है तिरे जिस पे अब नाज़ कभी मैं था।तेरी दुनिया में जो है आज कभी मैं था।यूँ
1.सुना है तुम अकेले में बहुत फ़रयाद करती हो।नहीं हूँ मैं कहो तुम अब किसे बर्बाद करती हो।बिछड़कर भूल जाना
सजाए बैठे हैं हम रात की महफ़िल।कि है तू ही नहीं किस बात की महफ़िल।सभी किस्से सभी सौग़ात की
अश्रुजल में डूब जाना स्वभाव है शरीर कामन से पर भयभीत ना हो भाव है फकीर काइस जगत में कौन
आओ सुनाऊँ तुमको बाबुएक है चोर एक है साधुचोर यहाँ सिंघासन पातासाधु को वन मिल जाताजिसने यह न्याय किया हैठीक-ठीक
मुल्ला कहे कि खुदा बड़ा हैहिंदू कहे कि रामसिख कहे कि बड़े हैं बाबा इसाई जीसस ले मानबता दो हैं
अभी ह्रदय सूखा था मेरा,खिली हुई थी मन की बगियामैं बावरी मस्त-मगन थी,साथ में मेरे थीं सब सखियांतुम निर्मोही कहाँ