मत्तगयंद सवैया
देख रहा इस भू तल में नित , देहिक मोह सदैव लुभाये !राग भरा चित घोल रहा रस , स्वप्न […]
देख रहा इस भू तल में नित , देहिक मोह सदैव लुभाये !राग भरा चित घोल रहा रस , स्वप्न […]
इक बात तुझे समझा न सकी,पिय प्रीत पगे पल देख रही।फिर पास नहीं सजना तुम तो,यह सावन की रुत भी
पाँव उपानह काठ नहीं तब, जंगल घूम रही मन मोहन।राग विराग बसा मन मंथन,
राम सभा सबरी सुख सोहत, काम निकाम बसे सुविचारी|सागर सोहत मोह सखी नित, प्रीत पगा मन माह बिसारी ||मों मन
नाम सुनाम करें जग में शिव|प्रीत सुधा हिय में नटनागर|| मोहकता मकरंद मनोहर |ध्यान धरे मन