जिस्म तन्हा है रूह प्यासी है।
जिस्म तन्हा है रूह प्यासी है।जिंदगी में यूँ बदहवासी है। जा रहा है क्या खाए मुझको,याद है […]
जिस्म तन्हा है रूह प्यासी है।जिंदगी में यूँ बदहवासी है। जा रहा है क्या खाए मुझको,याद है […]
जब से हम उनसे बिछड़े हैं ज़िंदगी शरारत लगती है।हर शै से रूठा करते हैं हर ‘शै’ में बगावत लगती
तेरी उलफ़त में सनम उम्र गवाना क्या है।जिंदा रहने को मगर और बहाना क्या है। तूं मेरी जां है
यूँ दिल की दुनिया में आ के कभी वैसे कभी न जाता है कोई,वो तो भूल गया है जैसे कि
कहाँ किसी पे कभी ऐतबार होता है।कहाँ किसी का जमाने में यार होता है। वो शौक या है जरूरत
सुना है सबको भा चुका हूँ मैं।बहुत ठोकर अब खा चुका हूँ मैं। उडा करता था आसमां में पर,जमीं
दिल में गर्दिश-ए-चमन भरते हैं।हम अपने होने ‘का’ दम भरते हैं। खुश रह लेंगे आज दुःख है तो कल,हर दिन
मिलता है मुझे और फिर मेरे इधर नहीं देखता।अब वो शख़्स मुड़ के कभी भी इक नज़र नहीं देखता। मसला
कि जो इंसाफ़ से नहीं मिलता। किसी के बाप से नहीं मिलता। त’अल्लुक़ ईश्क का ज़माने में, मिरे हालात से