नज़्म

नज़्म

कोई दम तक ज़िंदगी निकलेहादसों को तो चैन मिला।सांस जैसे रुक सी गयीजाँ निकली तो क्या हुआ।वक्त के साथ हम

नज़्म

नज़्म

जब कभी दामन मेरा आह की बारिश से सराबोर हो।तुम मिल जाया करो मुझ से यूँही दस्तरस।जब कभी बैठ कर