मित्रता
मेरी चेतना का चिंतन तुम्हीं हो मित्रता की मिठास तुम्हीं हो ! प्रेम का अनुराग तुम्हीं हो मेरे धैर्य की […]
मेरी चेतना का चिंतन तुम्हीं हो मित्रता की मिठास तुम्हीं हो ! प्रेम का अनुराग तुम्हीं हो मेरे धैर्य की […]
भटक रही थी मैं अकेली आसमान में, भरे हुए थे अधूरे अरमान दिल में। मेरा न जिस्म था न कोई
मेरा नाम,एक गुमनाम शब्द या चहदीवारों से झाँकता एक जागता स्वप्न ढूँढ नहीं पा रहा। मेरा नाम खुद की एक
लगता है बहुत गुमान रखते हैं। अपनी मुट्ठी में हमारी जान रखते हैं। बड़े बेख़बर होकर घूमते
तूफ़ाँ आए ज़िंदगी में मुझे कोई ग़म नहीं, माँ की दुआ काफ़ी है ता-उम्र मेरे लिए। मैंने जब से जाना
ओ कलि कुसुम के भँवरे! क्यूँ भूल गया तू एक नहीं? तू जिस फूल पे है उस पर निश्चित