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©️संदीप कुमार तिवारी 'श्रेयस', छंद मुक्त कविता

किंतु मैं हारा नहीं

बह चला जब हिम से मैं पर्वतों को चीर कर,राह में फिर रूप कितने थे मुझे धरने पड़े।झरना, नदी, सिंधु […]

©️संदीप कुमार तिवारी 'श्रेयस', छंद मुक्त कविता

अकेले चल के देख

बूंद बन के बादलों से गिर कभी धरा पेकभी बन निशा की दीप टिमटिमाताकभी बन सूरज सा तेज जलानेवालाकभी शाम

©️संदीप कुमार तिवारी 'श्रेयस', छंद मुक्त कविता

रात मेरी एकांकीपन की

मैने मान लिया है कि जीवन अकेले चलने का नाम है और मुझे इस बात की बेहद खुशी है।जब आपके

©️संदीप कुमार तिवारी 'श्रेयस', छंद मुक्त कविता

गीत गाता चल

जो भी मिलता है,खो जाता है।आँखों को धोखा हो जाता है।ठेस लगने पे सजग होते हैं पाँव,एक आदमी और फिर

©️संदीप कुमार तिवारी 'श्रेयस', छंद मुक्त कविता

जहाँ मुश्किल हो चलने में उसी राह से गुजरना है।

दिलों में हौसला नस-नस में  और  खून  भरना  है।जहाँ मुश्किल हो चलने में उसी राह से गुजरना है। मैं कुछ

©️संदीप कुमार तिवारी 'श्रेयस', छंद मुक्त कविता

जीवन का सार

जीवन का सार ही यहीं है।जीवन में सार ही नहीं है।जिसे जीतने का सौक नहीं,उसकी कोई हार ही नहीं है।

©️संदीप कुमार तिवारी 'श्रेयस', छंद मुक्त कविता

टूटा बंधन

सूखे बेल के पत्ते कभी वृक्ष नहीं हरा करते।सरोवर अपने पानी से सागर नहीं भरा करते।व्यक्ति से व्यक्ति की गरिमा

©️संदीप कुमार तिवारी 'श्रेयस', छंद मुक्त कविता

मैं हर रात चैन से सोता हूँ

कदाचित हो संभव तेरे बगैर मैं जी सकूतो होगी ज़िंदगी पर ज़िंदगी में मैं नहीं।तुम्हे क्या खबर कि कितने सागर

©️संदीप कुमार तिवारी 'श्रेयस', छंद मुक्त कविता

कहीं किसी में जी लेता हूँ

वर्षों ह्रदय में पीर रहे हैंअभी तो नैन से नीर बहे हैंसोता जग जब मैं जगता हूँखुद को बोझ सा

©️संदीप कुमार तिवारी 'श्रेयस', छंद मुक्त कविता

कैसा फूल खिला उपवन में

लिये इसके बहार नहीं हैकाँटों को भी प्यार नहीं हैजब देखो आ जाता सिंधु,खाली-खाली इन नैनन में।कैसा फूल खिला उपवन

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