शब्द-शरद आगमन-दोहा
शरद आगमन की घड़ी, शीतल मन्द बयार।धूप गुनगुनी नेह सी, मादक गंध बहार।। छाँव लगे ये ठिठुरती, धूप दुपहरी भाए।मन […]
शरद आगमन की घड़ी, शीतल मन्द बयार।धूप गुनगुनी नेह सी, मादक गंध बहार।। छाँव लगे ये ठिठुरती, धूप दुपहरी भाए।मन […]
नाम से तेरे सौ बार तोड़ा हमनेएक ही दिल को कइ बार तोड़ा हमने। टूटती है इक शै रोज अब
जिस्म तन्हा है रूह प्यासी है।जिंदगी में यूँ बदहवासी है। जा रहा है क्या खाए मुझको,याद है
जब से हम उनसे बिछड़े हैं ज़िंदगी शरारत लगती है।हर शै से रूठा करते हैं हर ‘शै’ में बगावत लगती
तेरी उलफ़त में सनम उम्र गवाना क्या है।जिंदा रहने को मगर और बहाना क्या है। तूं मेरी जां है
यूँ दिल की दुनिया में आ के कभी वैसे कभी न जाता है कोई,वो तो भूल गया है जैसे कि
कहाँ किसी पे कभी ऐतबार होता है।कहाँ किसी का जमाने में यार होता है। वो शौक या है जरूरत
कि हम चाहें अगर तो इस जहाँ में क्या नहीं होता।मगर दिल बे- ग़रज़ कोई यहाँ अपना नहीं होता।सितम ये
कित’ने हिस्सों में बट गई ज़िंदगी।किस से जा के लिपट गई ज़िंदगी।वक्त सोचा था बीत जाए मगर,वक्त कटना था कट
1. दिल को है तिरे जिस पे अब नाज़ कभी मैं था।तेरी दुनिया में जो है आज कभी मैं था।यूँ