रात की याद में दिन गुजारा गया
रात की याद में दिन गुजारा गयादेखते देखते वक्त सारा गया हस दिए आप भी गम […]
रात की याद में दिन गुजारा गयादेखते देखते वक्त सारा गया हस दिए आप भी गम […]
अपने-अपने लोग अपने लोग अपने खो गएँ।हमने महफिल को पुकारा और तन्हा हो गएं। कोई बच पाया नहीं उसके नज़र
देखते थे जिन्हें इक नज़ र के लिएवो नज़र भी न आए नज़र के लिए कल सुबह हम उन्हें
आज फिर सनम हमे उदास रहने दीजिए।दर्द भी सनम जिगर ‘के’ पास रहने दीजिए। इश्क़-विस्क छोड़ मौत की यहीं
अपने आँखों के मोती को चुन-चुन उठा लूं मैं।रुकना यारों थोड़ा कुछ ‘औ’भी चोट खा लूं मैं। मेरे पलकों
दिन की बातों पे रात टाली है।यूँ हर ख्यालों में बेख़याली है। मिलता हरदम हूँ मैं हजारों से,दिल का कमरा
ग़म ये दिल में पले और तू आए।दिल की बस्ती जले और तू आए। आईने की तरह सच कहे कोई,फिर
प्यार कर के जुबां कर दे।और हम सब गुनां कर दे। जान जाती ‘है’ ना से भी,जां रहे ना
कुछ सितम भी चाहिए महफिल में नहीं तोकौन रहता है किसी के दिल में नहीं तो एक तन्हाई ‘ही’
कभी हम दिल लगा के जी लिये।कभी हम दिल दुखा के जी लिये। जमाने भर ‘से’ क्या ले ना हमे,कि