छंद, डाॅo निशा पारिक

कुण्डलियाँ

खिलते जब-जब पुष्प हैं,सुरभित    करें   जहान।लेने नित मकरंद को,भ्रमर करे रसपान।।भ्रमर करे रसपान,देख कर पुष्प सजीले।प्रणय भाव से मत्त,हुआ

डाॅo निशा पारिक, मुक्तक

मुक्तक

  नश्वर  नेह  तुम्हें   क्या   पाऊँ,झूठी  जग की  प्रीत  मनाऊँ।कण  कण  में  कृष्ण  रमे हो,सरल स्नेह से तुम्हें रिझाऊँ।। देख

सवैया

मतगयन्द सवैया

राम सभा सबरी सुख सोहत, काम निकाम बसे सुविचारी|सागर सोहत मोह सखी नित, प्रीत पगा मन माह बिसारी ||मों मन

दोहा

दोहा

अति प्यारी अतिसुंदर छवि है मनमोहन तेरे रूप की।षोडस चन्द्रकलाएँ लज्जित निरख छवि ब्रज भूप की।। नील   वसन    नीरज