मुक्तक
ज़मीं को आसमाँ जितना जहाँ में कौन समझेगा।मुझे मालूम है लोगो वो मेरा मौन समझेगा।जिसे मैं दिल समझता हूँ जिसे […]
ज़मीं को आसमाँ जितना जहाँ में कौन समझेगा।मुझे मालूम है लोगो वो मेरा मौन समझेगा।जिसे मैं दिल समझता हूँ जिसे […]
इक बात तुझे समझा न सकी,पिय प्रीत पगे पल देख रही।फिर पास नहीं सजना तुम तो,यह सावन की रुत भी
खिलते जब-जब पुष्प हैं,सुरभित करें जहान।लेने नित मकरंद को,भ्रमर करे रसपान।।भ्रमर करे रसपान,देख कर पुष्प सजीले।प्रणय भाव से मत्त,हुआ
कान्हा तेरे मुख मंडल की,है ये आभ निराली।घुँघराले केशों के सँग में,मोर पंख की डाली।। भाल
नश्वर नेह तुम्हें क्या पाऊँ,झूठी जग की प्रीत मनाऊँ।कण कण में कृष्ण रमे हो,सरल स्नेह से तुम्हें रिझाऊँ।। देख
पाँव उपानह काठ नहीं तब, जंगल घूम रही मन मोहन।राग विराग बसा मन मंथन,
राम सभा सबरी सुख सोहत, काम निकाम बसे सुविचारी|सागर सोहत मोह सखी नित, प्रीत पगा मन माह बिसारी ||मों मन
दीप दिवाली के जले, रोशन हो संसार |वर्षण हो धन धान के, खुशियाँ अपरंपार || प्रीत मिलन जग रास की,
प्रीत पगा मन बावरा, देख रहा पथ आज।मिल जाए साजन अभी, या विष पीलूँ आज।। बरस रहे है बादरा, या