मुसाफ़िर चलते जाना रे
साँस-साँस पे घुटन लिखा हैबात-बात पे हारयही जगत की रीत है भईयाकर ले तू स्वीकारठोकर खा खा के है तुमको […]
साँस-साँस पे घुटन लिखा हैबात-बात पे हारयही जगत की रीत है भईयाकर ले तू स्वीकारठोकर खा खा के है तुमको […]
ऐसे कदम बढ़ाओगे तो क्या पाओगे? हिम्मत हार जाओगे तो क्या पाओगे? सब मिलना आसान है, जीवन भले संग्राम है।
बह चला जब हिम से मैं पर्वतों को चीर कर,राह में फिर रूप कितने थे मुझे धरने पड़े।झरना, नदी, सिंधु
बूंद बन के बादलों से गिर कभी धरा पेकभी बन निशा की दीप टिमटिमाताकभी बन सूरज सा तेज जलानेवालाकभी शाम
मैने मान लिया है कि जीवन अकेले चलने का नाम है और मुझे इस बात की बेहद खुशी है।जब आपके
जो भी मिलता है,खो जाता है।आँखों को धोखा हो जाता है।ठेस लगने पे सजग होते हैं पाँव,एक आदमी और फिर
दिलों में हौसला नस-नस में और खून भरना है।जहाँ मुश्किल हो चलने में उसी राह से गुजरना है। मैं कुछ
जीवन का सार ही यहीं है।जीवन में सार ही नहीं है।जिसे जीतने का सौक नहीं,उसकी कोई हार ही नहीं है।
सूखे बेल के पत्ते कभी वृक्ष नहीं हरा करते।सरोवर अपने पानी से सागर नहीं भरा करते।व्यक्ति से व्यक्ति की गरिमा
कदाचित हो संभव तेरे बगैर मैं जी सकूतो होगी ज़िंदगी पर ज़िंदगी में मैं नहीं।तुम्हे क्या खबर कि कितने सागर