ग़ज़ल लिखना सीखे
जैसा […]
वर्षों ह्रदय में पीर रहे हैंअभी तो नैन से नीर बहे हैंसोता जग जब मैं जगता हूँखुद को बोझ सा
लिये इसके बहार नहीं हैकाँटों को भी प्यार नहीं हैजब देखो आ जाता सिंधु,खाली-खाली इन नैनन में।कैसा फूल खिला उपवन
जो कुछ मिला है प्यार में कहता है हम को बांट दे। मुमकिन नहीं है आदमी ऐ यार ग़म
एक कमरे में कर ले बसर। और फिर तू उधर मैं इधर। बा-वफ़ा गम भी तू खूब है,
देर तक आसमां बरसता है। टूटकर जब कोई बिखरता है। आ भी जाओ तुम्हें कसम मेरी,
जब कोई भी सताने लगे। वो हमे याद आने लगे। आपको दिल दिया रहने को, आप
जिसको समझा वहीं नहीं लगता। कोई अपना कहीं नहीं लगता। सिर्फ़ अब है जहाँ-तहाँ साया, आदमी आदमी नहीं
तेरी मर्ज़ी है तेरी रज़ा है। मैं वहीं हूँ जो तू चाहता है। तेरे ही चाहने से है