अकेले चल के देख
बूंद बन के बादलों से गिर कभी धरा पेकभी बन निशा की दीप टिमटिमाताकभी बन सूरज सा तेज जलानेवालाकभी शाम […]
बूंद बन के बादलों से गिर कभी धरा पेकभी बन निशा की दीप टिमटिमाताकभी बन सूरज सा तेज जलानेवालाकभी शाम […]
मैने मान लिया है कि जीवन अकेले चलने का नाम है और मुझे इस बात की बेहद खुशी है।जब आपके
जो भी मिलता है,खो जाता है।आँखों को धोखा हो जाता है।ठेस लगने पे सजग होते हैं पाँव,एक आदमी और फिर
दिलों में हौसला नस-नस में और खून भरना है।जहाँ मुश्किल हो चलने में उसी राह से गुजरना है। मैं कुछ
जीवन का सार ही यहीं है।जीवन में सार ही नहीं है।जिसे जीतने का सौक नहीं,उसकी कोई हार ही नहीं है।
सूखे बेल के पत्ते कभी वृक्ष नहीं हरा करते।सरोवर अपने पानी से सागर नहीं भरा करते।व्यक्ति से व्यक्ति की गरिमा
कदाचित हो संभव तेरे बगैर मैं जी सकूतो होगी ज़िंदगी पर ज़िंदगी में मैं नहीं।तुम्हे क्या खबर कि कितने सागर
सुनो यारो कि क्या मुझको नहीं लगती।किसी की भी वफ़ा मुझको नहीं लगती। मुझे बीमार तू कर तो गया
सभी होश में हैं मगर मैं नहीं।उधर तुम नहीं हो इधर मैं नहीं। तिरे इश्क़ में ये किधर खो
जिसे भी होता है उसको पता नहीं होता। किसी का ईश्क़ किसी का ख़ता नहीं होता। हिसाब रखता है बहुत