बढ़ते चलो
अश्रुजल में डूब जाना स्वभाव है शरीर कामन से पर भयभीत ना हो भाव है फकीर काइस जगत में कौन […]
अश्रुजल में डूब जाना स्वभाव है शरीर कामन से पर भयभीत ना हो भाव है फकीर काइस जगत में कौन […]
आओ सुनाऊँ तुमको बाबुएक है चोर एक है साधुचोर यहाँ सिंघासन पातासाधु को वन मिल जाताजिसने यह न्याय किया हैठीक-ठीक
मुल्ला कहे कि खुदा बड़ा हैहिंदू कहे कि रामसिख कहे कि बड़े हैं बाबा इसाई जीसस ले मानबता दो हैं
अभी ह्रदय सूखा था मेरा,खिली हुई थी मन की बगियामैं बावरी मस्त-मगन थी,साथ में मेरे थीं सब सखियांतुम निर्मोही कहाँ
ह्रदय के किसी कोने से निकली कोई आह, कविता हुई।कोई मिलकर किसी से अधूरा रक्खा निबाह,कविता हुई।किसी दम का जब
कि जो इंसाफ़ से नहीं मिलता। किसी के बाप से नहीं मिलता। त’अल्लुक़ ईश्क का ज़माने में, मिरे हालात से
कहाँ मांगने जाओगे स्नेह भला उधार सखे!मोम के पुतले भरे पड़े हैं पत्थर है संसार सखे।सूखे पेड़ के नीचे बोलो
साँस-साँस पे घुटन लिखा हैबात-बात पे हारयही जगत की रीत है भईयाकर ले तू स्वीकारठोकर खा खा के है तुमको
ऐसे कदम बढ़ाओगे तो क्या पाओगे? हिम्मत हार जाओगे तो क्या पाओगे? सब मिलना आसान है, जीवन भले संग्राम है।
बह चला जब हिम से मैं पर्वतों को चीर कर,राह में फिर रूप कितने थे मुझे धरने पड़े।झरना, नदी, सिंधु