वफ़ा कहीं भी किसी से कोई नहीं करता।

 

है  ऐसा  काम  जो  अब  आदमी  नहीं  करता।
वफ़ा  कहीं  भी  किसी  से  कोई  नहीं  करता।

मुझे   नहीं  थी  ख़बर  इश्क़  इक  सज़ा  होगा,
नहीं  तो  यार   मैं  ये  दिल  लगी  नहीं  करता।

है कुछ तो  बात  तड़पने  का  इश्क़  में  वरना,
चिराग़   जल   के  कभी  रौशनी  नहीं  करता।

तड़प   चुके   हैं   जुदाई   में   तेरे  हम  इतना,
कि तुमसे मिलना भी चाहें तो जी नहीं करता।

बहुत  ही  चैन  से  कटती  है  ज़िंदगी  उसकी,
वो   आदमी   जो   कभी  दोस्ती  नहीं  करता।

तेरे जहान  में सब  कुछ है  रब  मगर  लेकिन,
वही   नहीं   है  जिसे   तू   कभी  नहीं  करता।

शहर मैं एक  ही  तो  शख़्स  मांगा  था  तुझसे,
कि काम कुछ न था पर तू वो भी नहीं करता।

          ©️संदीप कुमार तिवारी ‘श्रेयस’

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