ऐसा नहीं कि तुम ही सबसे महान बनना।
पहले जमीन बनना फिर आसमान बनना।
यह भी नहीं कि कुछ बनना ही नहीं है तुमको,
तू आसमान है तो फिर आसमान बनना।
आवाज़ जब दबा दी जाए कभी किसी की,
बनना पड़े किसी की तो तुम जुबान बनना।
सारे जहाँ को रोटी दे खुद रह जो भूखा,
समझो कि आ गया है उसको किसान बनना।
कुछ घर में आज बूढ़ों का देख भाल भी है,
कुछ पीढ़ियों को आता है ख़ानदान बनना।
जब भी बुलंदियों से गिरने लगे यूँ कोई,
तुम देखते ही उनकी खातिर ढ़लान बनना।
ये ज़िंदगी बहुत दु:ख देती है मानता हूँ,
इतना नहीं है आसां इसमें महान बनना।
©️संदीप कुमार तिवारी ‘श्रेयस’