पड़ रही इस तरह गले दुनिया।
मार डाले नहीं मुझे दुनिया।
दफ़-अतन अजनबी हूँ मैं खुद में,
आपके बाद यूँ लगे दुनिया।
एक मुद्दत से मैं भी तनहां हूँ,
एक मुद्दत से भी है ये दुनिया।
देखना है अगर जहन्नम तो,
उन से कह दो कि देख ले दुनिया।
वो अगर मिल गया तो पूछूँगा,
ऐ खुदा किस लिए है ये दुनिया।
तुमको रहना नहीं था दुनिया में,
क्यूँ बनाई है तुमने ये दुनिया।
बा-वफ़ा हो के जो मिला इससे,
नोच खाई है फिर उसे दुनिया।
अब इसी बात का सहारा है,
आई है रास भी किसे दुनिया।
क्या कहूँ हाल इश़्क का ‘श्रेयस’
एक वो हैं कि उस पे ये दुनिया।
©️संदीप कुमार तिवारी ‘श्रेयस’