आखिरी इक़रारनामा

मैं मेरे बयानात से फिर जाऊँ, नहीं कसम है मुझे मेरी जजबातों की।
बहकती निगाहो की कसम है
तड़पती आहों की कसम है
कसम है मुझे मेरी बेचैनियों की
तुमसे बिछड़कर मुर्दा बने इस जिस्म की कसम है।
ऐ जान-ए-तमन्ना मेरे हमराज़ मेरे हम-सफ़र,
मैं तेरी आँखों से बहुत दूर निकल आया हूँ।
क्यूँ न जाने अब भी ये वहम है मैं तेरा साया हूँ।
मेरी रगरग में तेरी आवाज़ गूंजती है
कैसे कह दूँ मेरे गिरह में शामिल नहीं है तू।
मगर तू फिक्र न कर इस बार नही सताऊँगा
तेरे पास आ के भी न आ पाऊँगा
मैं टूट चुका हूँ कुछ दम में बिखर जाऊँगा
अब निकल ही गया हूँ तेरे दिल से तो बहुत दूर निकल जाएऊँगा।
ख़ामोश सिस्कियों की आगोश में लिपटी हुई रूह को तेरी तमन्ना है
कभी न पूरे होनेवाले ख्वाबों को तेरी तमन्ना है
मेरी लिक्खी हुई हर ग़ज़ल, मेरी हर नज़्म, मेरी किताबों को तेरी तमन्ना है।
यह कि; अब दुआ है उस रब से,मेरी सांसो को मेरे तन से जुदा कर दे।
वो जो तुझसे जुदा करना चाहता है; तेरी खयालों को मेरे मन से जुदा कर दे।
गुनाह-ए-इश्क में तू भी शामिल क्यूँ हो
मेरा इकतरफा मुहब्बत भी कामिल क्यूँ हो
तेरी नफ़रत तेरे ऐतबार का
ये फैसला है परवरदिगार का
तुम से जुड़ी हर शै तोड़ा जाए जिसमे मेरा दिल भी शामिल है और वही पुरानी रीत अपनाई जाए।
तुम्हे मुझसे जुदा किया जाए।
मैं जाते-जाते एक दफ़ा फिर से अपने दुखते रग पे हाथ रख ये इकरार करता हूँ
मैं तुमसे प्यार करता हूँ,मैं तुमसे प्यार करता हूँ,मैं तुमसे बहुत प्यार करता हूँ।

©️संदीप कुमार तिवारी

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