मन की व्यथा भावनाओं का संसार है।
किंचित् मात्र भी तुमसे नहीं किसी को प्यार है।
व्यर्थ की आस लिये हुए चलते हो जिस राह में,
उस राह में आगे चलने पर मतलब का बाज़ार है।
मन की व्यथा भावनाओं का संसार है।
किंचित् मात्र भी तुमसे नहीं किसी को प्यार है।
नहीं उगता है कुछ भी गर बंज़र धरती है खार है
वहाँ बीज को बोने से कहो भला क्या सार है!
पत्थर को चुनो दीवार में देवता मत बना लेना,
भ्रम की संवेदना किसी से खुद पे खंज़र वार है।
मन की व्यथा भावनाओं का संसार है।
किंचित् मात्र भी तुमसे नहीं किसी को प्यार है।
वहा से वापस लौट जाना जहां प्रेम एक व्यपार है।
बार-बार स्वाभिमान को गर मिलता दुत्कार है।
एक तरफा जुड़े रहे यदि पुनः तुम ठुकराने पर,
फिर तो ऐसे जीवन को यार तेरे धिक्कार है।
मन की व्यथा भावनाओं का संसार है
किंचित् मात्र भी तुमसे नहीं किसी को प्यार है।
©️संदीप कुमार तिवारी