इमानदारी की भट्टी


इमानदारी की भट्टी में जलते हैं कुछ लोग
कुछ लोग जिनके चुल्हे गर्म नहीं होते
वो लोग जिनके घर दीवाली में पटाखे नहीं फूटते
वो लोग जिनका आँगन जुगनुओं से रौशन होता है।
वो लोग जिनका ईद चाँद से खाली होता है।
इमानदारी की भट्टी में जलते हैं कुछ लोग।
कुछ लोग जो ज़िंदगी में अकेले रह जाते हैं
वो लोग जो रात को खाली पेट तनहाई ओढ़ के सो जाते हैं
रात-रात भर दिवारों से बाते करते हैं,शुबह फिर दफ़्तर जाते हैं उस पगार के लिए जो सिर्फ उतना ही मिलता है जिससे साँस लेने के लिए इस दुनिया के बाज़ार से कुछ हवा खरीद सके और कल फिर उसी दफ़्तर में उसी बाॅस की गुलामी कर सके।
इमानदारी की भट्टी में जलते हैं कुछ लोग।
वो लोग जो रोज सुबह होते ही ईश्वर को धन्यवाद देते हैं ज़िंदा
रहने के लिए।
अगरबत्तियाँ दिखाते हैं देवतावों के तस्वीर के सामने इस
उम्मीद में कि शायद कभी तो किस्मत पलटेगी और फिर इन्हीं
सिलसिलों के दौरान बुढ़ापा कब आ जाता है पता ही नहीं चलता।
समय रूपी काल जवानी को कब खा जाता है पता ही नहीं चलता।
इमानदारी की भट्टी में जलते हैं कुछ लोग।
वो लोग जिनके छत से पानी टपकता है और फिर बदन के
सहारे रात को तकिया भिगोता है आँखों की बूँद बनकर।
वो लोग जिनकी बेटियों की शादी गाँव वालों से चँदा माँग के
की जाती जाती है और फिर जबतक जीते है अहसान रूपी
जूतों से कुचले जाते हैं।
इमानदारी की भट्टी में जलते हैं कुछ लोग।
वो लोग जो दिल में सौ अरमान लिए जब मरने लगते हैं तो
जल्दी प्राण नहीं निकलते यानी कि मौत भी उनसे कतराती है।
न जाने कौन उनका हक खा जाता है वर्षों पूरानी किताब में
अनमोल शब्दों को चाट खाता हो दीमक जैसे।
इमानदारी की भट्टी पे जलते हैं कुछ लोग
वो लोग जिन्हे उम्मीद होता है मरने के बाद उन्हें स्वर्ग मिलेगा
गर धर्म पे अडिग रहें या फिर जन्नत खुदावालों के लिए।
कमाल की है न! इमानदारी की भट्टी।

         ©️संदीप कुमार तिवारी

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