अंधेरों के मसीहा

बेख़ौफ़ ही घूमा करते हैं
जो बादल घना करते हैं
अँधेरों के मसीहा हैं जितने,
अब सूरज बना करते हैं

जाने किस नज़रिये से
दुनिया देखा करते हैं
गड़बड़-सड़बड़ करते हैं
सब बेलेखा करते हैं

पत्थर नहीं दिख पाता
जिनके पैरों के नीचे
फ़लक़ के चाँद में वो,
अब दाग देखा करते हैं

मैंने सुना है, ये सब
लोग कहा करते हैं
ग़रीबों के हमदर्द
महलों में रहा करते हैं

उस तट पे अक्सर
लोग प्यासे मर जाते हैं
जिस तट से होकर
समंदर बहा करते हैं

जाने ताजमहल
किस-किस ने बनाया
नाम शाहजहां का
लोग लिया करते हैं

निखार देते हैं औरों को
जो अपने हुनर से
वो मज़दूर अपने हाथों का
बलिदान दिया करते हैं

हमारी नई सदी की
तरक्क़ी हो गयी देखो
मिट्टी के खिलौने
अब नहीं बना करते हैं

कागज़ के फूलों पर
गुमां होता है
मोम के पुतलों के
भौंह धनुष तना करते हैं

वो बेख़ौफ़ ही घूमा करते हैं
जो बादल घना करते हैं
अँधेरों के मसीहा हैं जितने,
अब सूरज बना करते हैं

✍️संदीप कुमार तिवारी

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