नज़्म

जब कभी दामन मेरा आह की बारिश से सराबोर हो।
तुम मिल जाया करो मुझ से यूँही दस्तरस।
जब कभी बैठ कर अकेले मैं लिपट जाऊँ तन्हाई से,
जब मेरी बेचैन रूह को जरूरत हो किसी की,तुम मिलो!
तुम मिलो कभी सियाह रातों में,
बातों में, ज़ज़बातो में, सौगातों में, मुलाकातों में।
मैं तेरे जिस्म से लिपट कर रो लूंगा मुझे तुम मिलो!
मन के सूखे जंगल में आँधियों का शोर हो
खिसक जाए पहाड़ कोई।
पत्थरों की टकराहट से चिगारियाँ उड़े,
और फिर आग लगे दरख़्तों के सब्र के पैमाने में।
आग लगे जमाने में, ग़म के मयखाने में, दिल के आसियाने में।
शौक हो मुझको मैं किसी को याद करुँ,
फिर याद करने के लिए भी कोई अपना न हो,
कोई ख्वाब न हो कोई सपना न हो,
ऐसे में तपाक से मुझे तुम मिलो।
जब किसी से बिछड़ने की हूक हो,
गरीब-गरीब से ख़्वाबों में दौलत की भूख हो
ज़िंदगी की चूक हो।
मुझे तुम मिलो।
तुम मिलो कि शाम रौशन किए बह
रही हवाओ में, फ़िजाओं में, घटाओं
तुम मिलो किसी फ़कीर की दुआओं में।
मुझे तुम मिलो।

©️संदीप🪔

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