ग़ज़ल लिखना सीखें भाग-5

 

  • दोस्तों जैसे कि आप सभी को पता है कि इससे पहलेवाले एपिसोड यानी ग़ज़ल लिखना सीखे भाग-4 में हमने आख़िरी स्टेप काफ़िया को जाना अब बात करते हैं ग़ज़ल में मात्राओं की विस्तरित रूप से पहचान का लेकिन आज के भाग में आगे बढ़ने से पहले मैं आप सभी को बता दूँ कि अगर आपने ग़ज़ल लिखना सीखे भाग-4 नहीं पढ़ा तो एक बार जरूर पढ़ ले ताकि आज का भाग आप ठीक से समझ सके।
    तो चलिए आगे बढ़ते हैं,दोस्तों ग़ज़ल में मात्राओं पे भी विशेष ध्यान दिया गया है,जैसे हिंदी के छंद शास्त्र में चौपाईयाँ,दोहा,सवैया ये सब एक विशेष मात्रा पे आधारित होती हैं वैसे ही उर्दू काव्य में ग़ज़ल के भी अपनी कुछ निश्चित मात्राएँ होती हैं। ग़ज़ल में 32 बह्र (मात्राओं का प्रकार)होते हैं लेकिन इस पे हम बाद में चर्चा करेंगे,सबसे पहले इसके विस्तार को समझते हैं।

मात्रा गणना क्या है?

सीधे-सीधे शब्दों में कहे तो किसी छंद काव्य को संतुलित रखने के लिए और उसे लय में लाने के लिए विद्वानों ने मात्रा गणना बनाया है, आप ही समझो किसी भी काव्य रचना को एक निश्चित लय में रखने के लिए ताकि हम उसे संगीत बद्य कर सके,सबसे पहले क्या करना होगा ?सीधी सी बात है कि उसे एक निश्चित मात्रा में व्यवस्थित करना होगा नहीं तो उस रचना की सुंदरता खो जाती है और उसे आप नहीं गा सकते ।
इसे ऐसे समझते हैं,मान लो की कोई बहुत अच्छी कहानी हो पढ़ने में ह्रिदयश्पर्शी हो लेकिन क्या आप उसे गा सकते हैं, नहीं न!तो हम क्या करेंगे इसे लयबद्ध करेंगे उसे हम चौपाई,दोहा,या ग़ज़ल कुछ भी रूप दे सकते है जो कि एक निश्चित मात्रा में चलती हो तब जा के हम उसे गा भी सकते हैं और उस कहानी को एक गीत के माध्यम से समझा भी सकते है जिसको सुनने में लोग अधिक रुचि भी दिखाएंगे।
अब आते हैं ग़ज़ल की मात्रा गणना पे तो दोस्तों जैसे हिन्दी के छंद शास्त्र में शब्दों की मात्रा गणना को दो भागों लघु(1)और दीर्घ(2) में बाटा गया है वैसे हीं ग़ज़ल में भी शब्दों की मात्रा गणना को दो भागो गाफ़(2)और लाम(1)में बाटा गया हैं लेकिन यहाँ मैं आपको बता दू कि हिंदी के छंद शास्त्र के और ग़ज़ल के मात्रा ग़णना में थोड़ी सी भिन्नता है वो यह है कि हिंदी छंद शास्त्र की मात्रा गड़ना लिखने को आधार मान के की जाती है और ग़ज़ल में शब्दों को बोलने के आधार पे उनकी मात्रा ग़णना की जाती है।
जैसे:- निंदा फ़ज़ली साहब की एक ग़ज़ल का मत्ला यूँ है कि👇
1212 1122 1212 22
कभी किसी को मुकम्मल जहाँ नहीं मिलता
कहीं  जमीं  तो कहीं  आसमां  नहीं  मिलता
~निंदा फ़ज़ली
ल ला ल ला /ल ल ला ला/ल ला ल ला/ला ला
लाम गाफ़ लाम गाफ़/लाम लाम गाफ़ गाफ़/ लाम गाफ़ लाम गाफ़/गाफ़ गाफ़
1212 1122 1212 22
मुफ़ाइलुन फ़ाइलातुन मुफ़ाइलुन फ़ेलुन
यह एक निश्चित बह्र है जिसका नाम है बहरे मुजतस मुसमन मख़बून महज़ूफ
इसका रुक्न की मात्रा 1212 1122 1212 22 है।
हम आपको बता दे कि रुक्न के निश्चित समूह से बह्र बनते हैं और रुक्न के बहुवचन को अर्कान कहते हैं।बह्र से एक निश्चित धुन तैयार होती है जिस पे ग़ज़ल लिखी और गाई जाती है।
एक ऐसी ग़ज़ल जो दोषपूर्ण ना हो को लिखने के लिए हमें मात्रा गणना यानी उसका तक़्तीअ अच्छे से आनी चाहिए ।दोस्तों मात्रा गणना को मैं शायरी कैसे लिखे में समझा चुका हूँ आप पहले उसे एक बार देख ले।
1.सभी व्यंजन स्वतंत्र रूप से एक मात्री ही होते हैं जैसे:-क ख ग घ च छ ज ट ठ ड ढ त थ द ध न प फ ब भ म य र ल व श ष स ह छ …
2.अ इ उ स्वर और अनुस्वार(चँद्रबिंदु) तथा इनके साथ जुड़े अक्षर कि खि सि टि टु इत्यादि एक मात्रिक होते हैं।
3.आ ई ऊ ए ऐ ओ औ अं 2 मात्रिक हैं और इनके साथ जुड़े शब्द का की खू गे सै को टौ कं ये सब दो (2)मात्रिक माने जाएंगे।
यदि किसी शब्द में दो एक मात्रिक अक्षर है तो उसे एक साथ मिला के गिना जाता है और वो दो मात्रिक होगा जैसै:- कलम = क+लम(1+2)
समय= स+मय(1+2)
लेकिन जैसे ही इनमे थोड़ा बोलने में बदलाव हुआ तो शब्दों के मात्रिक गणना भी बदल जाता है जैसे:-आदमी=आ+द+मी(2+1+2)
ज़िंदगी(2+1+2)दोस्ती=दो+स्+ती(2+1+2)
असमय=अ+स+मय(1+1+2)
अब यहा समझे की बात यह है की हम समय शब्द को दो भाग में बांटते है क्यूँकि इसमे को अलग और मय (म+य=मय)को अलग बोला जा रहा है जैसे की मैने पहले ही आपको बता दिया है कि ग़ज़ल की मात्रा बोलने के अनुसार गिनी जाती है।

और देखे कि असमय को हमने तीन भागों में(असमय=अ+स+मय/1+1+2) बांटा क्यूँकि असमय को जब आप बोलते हैं तो इसमें ‘अ’ का अलग और ‘स’ का अलग और ‘मय’ का अलग उच्चारण हो रहा है।
तो दोस्तों ऐसे ही बहुत से शब्द हैं जिन्हे यहाँ लिखना संभव नहीं उम्मीद है आप इतना ही से समझ गये होंगे अब एक ग़ज़ल के कुछ अश’आर ले के उसकी तक़्तीअ(मात्रा ग़णना) करते हैं।
प्रस्तूत है एक ग़ज़ल👇
ग़ज़ल
221/2122/ 221/ 2122
ऐसा  नहीं  कि  तुम  ही सबसे  महान  बनना।
पहले  जमीन  बनना  फिर  आसमान  बनना।

यह भी नहीं कि कुछ बनना ही नहीं है तुमको,
तू   आसमान  है  तो  फिर  आसमान  बनना।

आवाज़ जब दबा  दी  जाए  कभी  किसी  की,
बनना पड़े किसी की  तो  तुम  जुबान  बनना।

सारे   जहाँ   को  रोटी  दे  खुद  रहे  जो  भूखा,
समझो कि आ गया है उसको किसान बनना।

कुछ घर में आज  बूढ़ों का देख-भाल  भी  है,
कुछ पीढ़ियों को आता  है  ख़ानदान  बनना।

जब   भी  बुलंदियों   से  गिरने  लगे  यूँ  कोई,
तुम देखते ही उनकी खातिर  ढ़लान  बनना।

ये   ज़िंदगी   बहुत  दु:ख  देती  है  मानता  हूँ,
इतना   नहीं  है  आसां  इसमें  महान  बनना।
©️संदीप कुमार तिवारी
अब इसी ग़ज़ल को तक़्तीअ के अनुसार तोड़ते हैं।👇
ग़ज़ल
221/2122/ 221/ 2122
ऐसा न/हीं कि तुम ही/सबसे म/हान बनना।
पहले ज/मीन बनना / फिर आस/मान बनना।
221/2122/ 221/ 2122
यह भी न/हीं कि कुछ बन/ना ही न/हीं है तुमको,
तू आस/मान है तो/ फिर आस/मान बनना।
221/2122/ 221/ 2122
आवाज़/ जब दबा दी/ जाए क/भी किसी की,
बनना प/ड़े किसी की/ तो तुम जु/बान बनना।
221/2122/ 221/ 2122
सारे ज/हाँ को रोटी/ दे खुद र/हे जो भूखा,
समझो कि /आ गया है / उसको कि/सान बनना।
221/2122/ 221/ 2122
कुछ घर में/ आज बूढ़ों / का देख /भाल भी है,
कुछ पीढ़ि/यों को आता/ है ख़ान/दान बनना।
221/2122/ 221/ 2122
जब भी बु/लंदियों से/ गिरने लगे/ यूँ कोई,
तुम देख/ते ही उनकी/ खातिर ढ़/लान बनना।
221/2122/ 221/ 2122
ये ज़िंद=गी बहुत दु:ख / देती है/ मानता हूँ,
इतना न/हीं है आसां/ इसमें म/हान बनना।

मैं आपको बता दूँ कि ऊपर्युक्त ग़ज़ल में कहीं-कहीं दो मात्रिक अक्षर को भी एक मात्रिक गिना गया है जो आपको समझ में नहीं आ रहा होगा तो मैं आप सभी को बता दू कि ग़ज़ल में मात्रा गिराने का भी एक नियम है, कुछ अक्षरों की मात्रा गिराई जा सकती हैं जैसे:-को से, गे, ई इस तरह के कुछ संयुक्ताक्षर हैं जिनकी मात्राएं गिराई जा सकती हैं।
दोस्तों मात्रा गिराने का भी अपना एक नियम होता है।
कुछ ऐसे शब्द भी हैं जो आपको लगेगा कि ये शाश्वत दो मात्रिक नहीं है मगर वो दो मात्रिक ही होते हैं ना कि तीन मात्रिक जैसे-यदि,कपि,कुछ,रुक, दुख,इन,सब यह सारे शब्द दो मात्रिक हैं।यदि=2,कपि=2,कुछ=2,रुक=2।
कुछ शब्द मात्रा गणना के साथ दिए जा रहे हैं और आप सभी को खुद समझ आ जाएगा।👇

सस्ती=सस्+ती=22
मस्ती=22
दोस्ती=दो+स्+ती=212
ध्यान दे यहाँ दोस्ती शब्द में दो अक्षर में स्वर वर्ण जुड़े रहने के कारण ये किसी दूसरे शब्द के साथ संयुक्त नहीं हो सकते इस लिए इसमें बीच का स् स्वतंत्र रह जा रहा है जो एक मात्रा में है।
दोस्तों=दो+स्+तों=2+1+2
मस्ताना=मस्+ता+ना=222
यहाँ ध्यान दे मस्ताना में और के साथ कोई स्वर व्यंजन नहीं जुड़ा है इस लिए और एक साथ जुड़ के दो मात्रिक हो गए हैं।
वैसे ही कुछ और शब्द लेते हैं।👇
वक्र=वक+र्=21
यज्ञ=यग+य=21
क्रुद्ध=क्रुद+ध=21
सुमधुर=सु+म+धुर=1+1+2
यहा सुमधुर को कही मात्रा गिराते हुए एक साथ सु और को संयुक्त किया जा सकता है।
जैसे :-सुमधुर=सुम+धुर=22
ऐसे कुछ शब्द अपवाद में हैं जिन्हे ग़ज़ल लिखते -लिखते आप समझ जाएंगे।
और कुछ अलग प्रकार के शब्द ले के समझते हैं।👇
झूठ – झूठ = 21
उधर उधर = 12
तिरंगा – ति / रं / गा = 122
ऊपर ऊ / पर = 22
मारा मा / रा = 22
आग आ / ग = 21
मर – मर = 2
मरा मरा = 12
सत्य – सत् / य = 21
असत्य – अ / सत् / य = 121
सच – सच = 2
आमंत्रण – आ / मन् / त्रण = 222
राधा – रा / धा = 22
श्याम – श्या / म = 21
आपको -आ / प / को = 212
ग़ज़ल – ग / ज़ल = 12
मंज़िल – मं / ज़िल = 22
दोस्त – दोस् / त = 2 1
दोस्ती – दो / स् / ती = 21 2
इत्यादि।
तो इस तरह हमने ग़ज़ल की तक़्तीअ को समझा।
आज इतना ही फिर मिलते हैं अगले भाग में तबतक के लिए धन्यवाद,जय हिंद🇮🇳🙏

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