सजाए बैठे हैं हम रात की महफ़िल।

 

सजाए   बैठे  हैं   हम  रात  की  महफ़िल।
कि है तू ही नहीं  किस बात की महफ़िल।
सभी किस्से   सभी  सौग़ात की महफ़िल।
तू लेता जा  तिरी  हर  बात  की महफ़िल।

मैं   सबसे  आख़िरी   पंक्ति   में  पीछे  था,
वफ़ा की थी  जहाँ  ख़ैरात  की  महफ़िल।

गवारा   ही   नहीं   है  क्या   ही   बोलू  मैं,
मुझे ये धत्  तेरी  की जात  की  महफ़िल।

यकीं   मानो    मेरी   जां   टूट  जाती   है,
मुहब्बत में सभी  जज़्बात की  महफ़िल।

नहीं   है   तू    मगर   मुझको   सताती  है,
तिरी यादों  की ये  बरसात  की महफ़िल।

फ़रेबी   लोग    हैं   है   घात   की  दुनिया,
लगा  बैठे   सभी  हैं   घात  की  महफ़िल।

किसी आशिक़  की धड़कन  रोक देती है,
किसी दुल्हन  की ये बारात की महफ़िल।

मुझे   बस     चैन   आता  है  उजालों   में,
रुलाती   है  अकेली  रात   की  महफ़िल।

कि  यूँ  लगता   है   मुझको काट  खाएगी,
सफ़र में जीत तो फिर मात की महफ़िल।

किसी   हालात   से   मिलती  नहीं  ‘श्रेयस’,
यहाँ  तेरी  किसी   हालात  की  महफ़िल।

©️संदीप कुमार तिवारी’श्रेयस’

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