सभी होश में हैं मगर मैं नहीं।
उधर तुम नहीं हो इधर मैं नहीं।
तिरे इश्क़ में ये किधर खो गया,
जिधर देखता हूँ उधर मैं नहीं।
नज़र बंद कर के मुझे देख तो,
बता फिर मुझे अब किधर मैं नहीं।
वो जिस पे परिंदे ठहर ना सके,
मिरी जान सुन वो शजर मैं नहीं।
वफ़ा के सफ़र में मैं ऐसे चला,
किसी भी सफ़र का सफ़र मैं नहीं।
कि अब हाल ये है कि खो कर तुझे,
मुझी में हूँ मैं हाँ मगर मैं नहीं।
बदल ले मुझे जब भी चाहे जिधर,
वो तेरी गली का डगर मैं नहीं।
©️संदीप कुमार तिवारी’श्रेयस”