जिसे भी होता है उसको पता नहीं होता।
किसी का ईश्क़ किसी का ख़ता नहीं होता।
हिसाब रखता है बहुत ईश्क़ में तो तू सुन ले,
कि इसमें मूल भी ऐ दिल अदा नहीं होता।
फ़रेब, झूठ, बनावट, दग़ा-वगा सब कुछ,
ये आज की दुनिया में तो क्या नहीं होता।
मुझे तो डर है उसे खो चुका हूँ मैं शायद,
किसी भी बात पे वो अब ख़पा नहीं होता।
वहम से ठीक है कुत्ता ही पाल ले कोई,
ये वो बला है कभी बेवफ़ा नहीं होता।
©️संदीप कुमार तिवारी “श्रेयस”