जैसा कि आपने भाग-2 में पढ़ा कि एक अच्छा लेखक होने के लिए एक अच्छा पाठक होना भी बेहद जरूरी है।तो दोस्तो जाहिर है आप यह बात समझ चुके होंगे;इसलिए आगे बढ़ने से पहले मैं आपको बता दूँ कि मैं जो भी ग़ज़ल के बारे में आपको अब समझाने जा रहा हूँ,उसको समझने के लिए आपको *ग़ज़ल कैसे लिखें?* भाग-1 और भाग-2 जरूर पढ़ लेना चाहिए।चलिए अब आगे बढ़ते हैं।
आज हम ग़ज़ल की परिभाषा को विस्तार से समझेंगे।दोस्तों ग़ज़ल के बारे में तो हम भाग-1 में ही कुछ चर्चा कर चुके हैं।हम आपको बता दे कि ग़ज़ल के बारे में अलग-अलग लेखकों का अलग-अलग विचार है लेकिन इतना जरूर है कि ग़ज़ल एक महबूब द्वारा अपनी महबुबा के लिए कही जाती है।
गज़ल का शाब्दिक अर्थ क्या है?
दोस्तों ग़ज़ल के बारे में वैसे तो सबका अलग-अलग अपनी राय है वहीं बाल कृष्ण जी कहते हैं ग़ज़ल अरबी भाषा का शब्द है और इसका शाब्दिक अर्थ है “माशूक़ से बातचीत“।वैसे तो फारसी में ही ग़ज़ल को अपनी एक स्वतंत्र पहचान मिली लेकिन इसका मूल स्रोत अरबी शाईरी है।इसमें प्रेम,श्रींगार,और विरह को बहुत बारीकी से किसी शाईर द्वारा दर्शाया जाता है।ग़ज़ल में मुख्य रुप से 5 या 11 अश’आर होते है लेकिन शाईर इसे बढ़ा घटा भी सकते हैं और व्याकरण की दृष्टी से कहे तो ग़ज़ल वह पद्य रचना है जिसमें अरूज़ अनुसार बह्र और वज़्न का ध्यान रखते हुए,रदीफ़,काफ़िया को निभाते हुए कुछ शे’र कहें जाते है जो आपस में स्वतंत्र होते हैं,जिसमें कोमल भावनाओं,विरह(जुदाई),प्रेम,श्रींगार भरा होता है।
ग़ज़ल का वर्गीकरण
अलग-अलग वर्ग में ग़ज़ले लिखी जाती रहीं हैं नीचे कुछ वर्गों के नाम दिये जा रहे हैं और उन्हे परिभाषित किया जा रहा है गौर फ़रमाए।
- विषय के अनुसार
- कहन के अनुसार
- रदीफ़ के अनुसार
- अर्कान के अनुसार
- बह्र के अनुसार
- भाषा के अनुसार
1. विषय के अनुसार:- विषय के अनुसार ग़ज़ल को दो वर्गो में बाटा गया है। मुसलसल ग़ज़ल और ग़ैर मुसलसल ग़ज़ल।
1.1 मुसलसल ग़ज़ल:- जिसमें एक ही विषय पे अश’आर पेश किए जाए उसे मुसलसल ग़ज़ल कहते हैं।
जैसे कि मान ले किसी ग़ज़ल का मत्ला महबूबा के लिए लिखी जा रही है तो उसके सारे अश’आर उसी विषय पे लिखे जाएंगे। इसमें भी कुछ अलग-अलग वर्ग हैं जैसे:- तंज़ो-मज़ाह(हास्य ग़ज़ल ) इसके सारे अश’आर मजाकिया किस्म के हीं होंगे।
1.1.2 मार्सिया- हसन और हुसैन की सहादत पर अथवा अपने प्रिये की मृत्यू के शोक में जो ग़ज़ल कही जाती है उसे मार्सिया कहते हैं।
1.1.3 हम्द-इसमे ख़ुदा की शान में ग़ज़लें लिखी जाती हैं।
1.1.4 शह्र आशेब:-इसमें शहर के बर्बाद हो जाने पर लुटे सहर की स्थिति बताई जाती है और एक है *नात* इसमें पैगंबर साहब की शान में ग़ज़लें लिखी जाती हैं।
2. कहन के अनुसार:- इसमे भी दो प्रकार है, रवायती और जदीद।
रवायती मे जो पूरानी ग़ज़ल लिखने की परंपरा है उसे उसी प्राकर रहने दिया जाता है,इसमें शाब्दिक और विषयात्मक प्रस्तुति में अनेक बंदिशो को स्वीकार करते हुए उन विषय,प्रतिको,बिंब और भाषा को अपनाते हैं।फिर जब हम रवायती ग़ज़ल की बंदिशों को तोड़कर जब कुछ अपना समावेश करते हैं जो कि मानवीय भी हो तो ऐसी ग़ज़ल *जदीद* बन जाती है।
कुछ बातें ऐसी हैं जो आप ग़ज़ल कैसे लिखें भाग-1 और ग़ज़ल कैसे लिखे भाग-2 में देख सकते हैं।अर्कान कें अनुसार जिस ग़ज़ल में कोई मात्रा घटाई नहीं गई हो उसे हम *सालिम* कहते हैं और जिस ग़ज़ल के मूल अर्कान में कोई मात्रा घटाकर उप बह्र बनाई गयी हो उसे हम *मुज़ाहिफ़* ग़ज़ल कहेंगे।
*बह्र के अनुसार* :- जिस ग़ज़ल में मूल अर्कान एक ही हो उसे हम मुफ्रद(शाब्दिक अर्थ-अकेला)अर्कान की ग़ज़ल कहेंगे।
जैसे,-फाईलातुन फाईलातुन फाईलातुन फाईलातुन।
एक है *मुरक्कब* इसका शाब्दिक अर्थ-मिश्रित है।यदि कोई बह्र दो मूल अर्कान से मिलकर बनती है तो उसे मुरक्कब बह्र कहा जाएगा।
जैसे-मुफाईलुन फाइलातुन मुफ़ाईलुन फ़ाइलातुन(1222 2122 1222 2122)बह्र में दो मूल रुक्न का संयोग है अत: यह एक मुरक्कब बह्र है।
भाषा के अनुसार ग़ज़ल अलग-अलग भाषा में हो सकती है जैसे:- हिंदी,उर्दू,नेपाली,गुजराती इत्यादि।यह ग़ज़लकार के ऊपर निर्भर करता है कि वह किस भाषा का जानकार है,किस भाषा में लिखना चाहता है।
*अच्छी ग़ज़ल के गुण* यह बहुत जरूरी है कि आपको ये पता होना चाहिए कि आप जो कुछ भी लिख रहे हैं उसे पसंद भी किया जाएगा या नहीं। कई बार ऐसा होता है कि हम जो लिखते हैं वो व्याकरण और भाषा की दृष्टी से तो ठीक होता है किंतु पाठक को पसंद नहीं आता। रचना चाहे कोई भी हो उसमें भाव का होना बेहद जरूरी है। जिस रचना में भाव न हो वो मृत रचना यानी पत्थर के शरीर जैसी है जो शरीर तो बन गया लेकिन किसी काम का नहीं।
- तो दोस्तों ग़ज़ल लिखने के लिए हमे कुछ बातों पे ध्यान देना बेहद जरूरी है जैसे ग़ज़ल लिखने में कौन कौन सी बाते ध्यान देने योग्य हैं वो हम नीचे लिख रहे हैं।
ग़ज़ल दोष मुक्त होनी चाहिए और सांकेतिक भी होनी चाहिए मतलब इशारो में ही सभी बातें कहना वो भी कम शब्दों मे। इसमें शिल्प और कथन का भी सुंदर संयोजन होनी चाहिए।
*ग़ज़ल भावोत्तेजक होने चाहिए।*
जैसे कि आपको पता हैं ग़ज़ल हमारी भावनाओं को व्यक्त करने का एक अच्छा माध्यम है इस लिए इसमें गहरी भावों का होना जरूरी है कि इसके अश’आर को कोई पढ़े तो प्रत्येक अश’आर उसको आपबीती लगे।
*सूफ़ियाना रंग*
इस प्रकार की ग़ज़लों में शाईर तो अपनी माशूक़ के लिए कुछ कहता है लेकिन इस प्रकार की ग़ज़लों में अक्सर दो अर्थ निकले हैं जिसमें कि शाईर खुदा को भी याद करने लगता है।सूफ़ियाना अंदाज़ ग़ज़लों का मुख्य हिस्सा रहा है।
ग़ज़ले मुहाबरेदार भी होनी चाहिए और सामाजिक दृष्टिकोण को देखकर लिखी जानी चाहिए।याद रहे! ग़ज़ल हमेशा लयात्मक होनी चाहिए जो गाई जा सके। ग़ज़ल में तहजीब के साथ-साथ गहरा अनुभव का होना भी जरूरी है ।
*रब्त* (अंतरसंबन्ध) :- ग़ज़ल के शे’र में दोनो मिस्रों मे रब्त होना बेहद जरूरी है,पहली पंक्ति में हम जो बात कहते हैं अगले मिस्रे में उस बात को पूर्णता प्रदान करना ज़रूरी है।
*कहन की ताज़गी*
जब आप ग़ज़ल लिखते हैं तो उसमें नयापन और मौलिकता का होना बहुत जरूरी है,ऐसा नहीं कि आप कुछ लिख रहे हैं और पढ़ने वाला उसे पहले से हीं कहीं पढ़ चुका हो,शे’र ऐसे लिखे कि पहले इसे सोचा भी नही गया हो ऐसे अंदाज़ में लिखे कि यह बिलकुल नया और मौलिक लगे। आज इतना ही फिर मिलते हैं अगले एपिसोड *ग़ज़ल केसे लिखे?*के भाग-4 में।धन्यवाद,आदाब़|
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