कितने भगवान्

मुल्ला कहे कि खुदा बड़ा है
हिंदू कहे कि राम
सिख कहे कि बड़े हैं बाबा इसाई जीसस ले मान
बता दो हैं कितने भगवान्?
कदम-कदम पे भेस बदलता कदम-कदम इंसान
बता दो हैं कितने भगवान्?

इस दुनिया की रीत निराली कहीं है दुर्गा कहीं है काली
जीती माँ को छोड़ के घर में करते सब जंगल रखवाली
जितने हुए हैं संत जगत में उतने अलग हैं नियम बनाएँ
बहुत भ्रमित है दुनिया लोगों सच्ची मर्म को जान न पाए
मैं मूरख हूँ मैं क्या जानू मैं ठहरा नादान
बता दो हैं कितने भगवान्?

मुस्लिम के क्या चार पैर हैं हिंदू के क्या दस हाथ हैं
किसने तुमसे बता दिया है हर मानव की अलग जात है
कह दो भईया किसको जाने लाखों धर्म में किसको माने
कोई चैन पा लेता घर में कोई जाता है मयखाने
क्यूँ है बंदे तुम्हें जगत में ये झूठा अभिमान
बता दो हैं कितने भगवान्?

मैंने रक्खा राम की मूरत जहाँ पे अकबर खड़े हुए थें
राम ने ना अकबर को मारा अकबर भी चुप पड़े हुए थें
पर इन दोनों को पूजनेवाले तुममें क्यूँ अब खैर नहीं
ठीक से देखो इन दोनों में मूर्खों कोई बैर नहीं
मंदिर-मस्ज़िद कभी न झगड़ें
झगड़ रहा इंसान
बता दो हैं कितने भगवान्?
…..+2

©संदीप कुमार तिवारी ‘बेघर’

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