लिये इसके बहार नहीं है
काँटों को भी प्यार नहीं है
जब देखो आ जाता सिंधु,
खाली-खाली इन नैनन में।
कैसा फूल खिला उपवन में?
माली को भी ध्यान नहीं है
इसे कोई सम्मान नहीं है
तितली कब आएगी इसपर
इसको कोई भान नहीं है ।
हर अंग पराग से भरा हुआ
मुरझाने से यह डरा हुआ ।
मधुरस भी विश भर देता है
इसके बढ़ते हुए यौवन में ।
कैसा फूल खिला उपवन में?
उम्र कहाँ कब कहना माने
जिसकी पीर है वो ही जाने
सब्र टूटता है पैमाने पर
कली से फूल हो जाने पर
पत्थर में जीवन का बीज-
ना मिलता अच्छा होता था।
मरुस्थल में कमल का फूल
ना खिलता अच्छा होता था।
तन्हा रैन की हर इक बेला,
आग लगाती है तन-मन में
कैसा फूल खिला उपवन में?
लिये इसके बहार नहीं है
काँटों को भी प्यार नहीं है
जब देखो आ जाता सिंधु,
खाली-खाली इन नैनन में।
कैसा फूल खिला उपवन में ?
ये कैसा फूल खिला उपवन में?
©संदीप कुमार तिवारी ‘बेघर’