अभी ह्रदय सूखा था मेरा,खिली हुई थी मन की बगिया
मैं बावरी मस्त-मगन थी,साथ में मेरे थीं सब सखियां
तुम निर्मोही कहाँ से आए,हमने तुमसे नैन मिलाया
याद तेरे आते हीं बालम आँखों में मानसून भी आया।
पहले मैं अनभिज्ञ थी प्रियतम इस दुनिया के मेले से
आपा-धापी से जगत् की भीड़-भाड़ के रेले से
अब जान गयी कि बिछड़ के लोग पल में पराये हो जाते हैं
तुमसे मिलकर यह भान हुआ है, आँख में आँसू भी आते हैं।
खुशी का मौसम देखो तो,दुःख का संदेश है लाया
याद तेरे आते ही बालम,आँखों में मानसून भी आया।
ऋतु बदलने की इस रीत को मैं भी समझ पायी
तुमसे मिलकर सच्ची-झूठी प्रीत को मैं समझ पायी
कल का क्या भरोसा साजन हम रहें कि तुम नहीं
क्या बुरा किया कि तुमसे मिलने की हमने बात कही
छोड़ गए हो बना के विरहन तुमने भी क्या साथ निभाया
याद तेरे आते ही बालम,आँखों में मानसून भी आया ।
©संदीप कुमार तिवारी ‘बेघर’