बूंद बन के बादलों से गिर कभी धरा पे
कभी बन निशा की दीप टिमटिमाता
कभी बन सूरज सा तेज जलानेवाला
कभी शाम की शीतलता में ढल के देख
पंछी गगन हैं,खिलते चमन हैं।
चल तो, अकेले चल के देख!
कभी उषा की किरणों से बात कर अकेले
कभी चाँद को निहार के रात को गुज़ार दे
सिर्फ पत्थर बनना किस हद तक सही है
कभी खेत में ढेले सा गल के तो देख
पंछी गगन हैं,खिलते चमन हैं।
चल तो, अकेले चल के देख।
कभी नदी के लहरों के संग बहते जा
कभी फूलों के कान में गीत गुनगुना
अब जोड़ नये ह्रिदय से विश्वास को,
आस बन किसी के मन में पल के देख।
पंछी गगन हैं,खिलते चमन हैं।
चल तो,अकेले चल के देख।
©️संदीप कुमार तिवारी ‘बेघर’