मरम्मत

‘मरम्मत’

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“मुझे एक बात समझ में नहीं आ रही है कि,.जब आपने हमारे रहने के लिए अपनी कमाई से शहर में यह मकान खरीद ही लिया है,.फिर आप जेठ जी के साथ मिलकर गांव वाले पुराने मकान की मरम्मत क्यों करवाना चाहते हैं!”

काफी देर से फोन पर अपने पति और अपने जेठ के बीच हो रही बातें सुनने के बाद रागिनी अचानक अपने पति सुभाष जी से पूछ बैठी।

“रागिनी समझने की कोशिश करो!.मैं भले ही यहां शहर में रहता हूंँ लेकिन बड़े भैया तो अभी भी वहीं रहते हैं,.और मकान काफी बड़ा है! भैया को अकेले उस मकान की रखरखाव करने में दिक्कत आ रही है इसलिए मैं थोड़ी मदद कर रहा हूँ।”

पति की बातें सुनकर रागिनी पल भर के लिए चुप हो गई। लेकिन सुभाष जी रागिनी को समझाने लगे..

“और इस में दिक्कत क्या है!.कौन सा मुझे खुद वहां जाकर सब कुछ करना है!”

“लेकिन जब हमें वहां रहना ही नहीं है तो हम उस मकान पर एक रूपया भी क्यों खर्च करें!”

“तुम ये कैसी बातें कर रही हो रागिनी”

“मैं सही कह रही हूंँ जी!.जिसे वहां रहना है रहे,.उन्हें घर की मरम्मत करवानी है तो अपने रुपयों से अपने हिस्से की मरम्मत करवाएं!”

“यहां हिस्से की बात कहां से आ गई!.उस मकान का बंटवारा तो कभी हुआ ही नहीं था।”

“इसीलिए तो कह रही हूंँ मैं कि,.इसी बहाने लगे हाथ आप उस मकान का बंटवारा भी करवा लीजिए और उन्हें करवाने दीजिए अपने हिस्से के मकान की मरम्मत!”

अपनी पत्नी के बातें सुनकर सुभाष जी कुछ देर के लिए गहरी सोच में पड़ गए। लेकिन रागिनी उन्हें समझाने लगी..

“अब हमें उस पुराने मकान में अपनी कमाई का एक रूपया भी खर्च नहीं करना चाहिए!.और वैसे भी जब हमें वहां रहना ही नहीं है तो व्यर्थ का खर्च हम करें क्यों?.हमें जो भी खर्च करना है वह अपने इस नए मकान को सजाने संवारने में करें करना है,.बस!”

“जानती हो रागिनी!.पिताजी और बड़े भैया ने उस मकान के एक-एक कोठरी को अपनी मेहनत और पसीने की कमाई का एक-एक पाई जोड़कर बनाया था।”

“इसमें कौन सी बड़ी बात है जी!.सब यही करते हैं,. और वैसे भी उस मकान में तो हमारा बस एक हिस्सा है!.लेकिन यह मकान तो हमारा अपना है ना!”

“तुम सही कह रही हो!.लेकिन बड़े भैया को कौन समझाए,.वह तो अभी भी उसी पुराने मकान को अपना समझते हैं!”

“मैं कुछ समझी नहीं?”

“बड़े भैया का सबसे बड़ा बेटा रजनीश जो मुंबई में रहता है,.वह भी काफी दिनों से उन्हें समझा रहा है लेकिन भैया उसकी बात मानने को तैयार नहीं है!”

“आप पहेलियां क्यों बुझा रहे हैं!.पूरी बात क्यों नहीं बताते?”

रागिनी के जिज्ञासा अपने चरम पर पहुंची तो सुभाष जी आगे बताने लगे.. 

“रजनीश मुंबई में एक मकान खरीद रहा है!.और वह चाहता है कि बड़े भैया वहां आकर उसके साथ ही रहे!”

“यह तो बहुत अच्छी बात है!”

“लेकिन उसकी एक शर्त है!”

“कैसी शर्त?”

“वह चाहता है कि बड़े भैया वह पुराना मकान हमेशा के लिए छोड़ कर उसके साथ रहने आ जाए!”

“आखिर रजनीश चाहता क्या है,?.आप साफ-साफ क्यों नहीं बताते!”

रागिनी तनिक झुंझला उठी। लेकिन सुभाष जी ने अपनी बात पूरी की..

“वह चाहता है कि,.बड़े भैया अपने पुश्तैनी मकान का बंटवारा कर अपना हिस्सा बेचकर हमेशा के लिए उसके साथ रहने मुंबई चले जाए!”

सुभाष के मुंह से पूरी बात सुनकर रागिनी हैरान रह गई..

“लगता है उसके मन में लालच आ गया है!”

“नहीं रागिनी!.मुझे लगता है कि,.वह भी तुम्हारी तरह उस पुराने मकान की मरम्मत में एक रूपया भी खर्च करना नहीं चाहता है!.इसीलिए उसने यह आसान रास्ता निकाला है।”

“यह तो बहुत गलत बात है जी!.कल को अपने चचेरे भाई की देखा-देखी हमारे बच्चे भी बड़े अरमानों से बनाए गए हमारे इस मकान को बेचकर कहीं और जहां वह चाहेंगे वहां रहने की बातें करेंगे!”

“यह तो लाजमी सी बात है!.जो बड़े करते हैं छोटे उसी का तो अनुसरण करते हैं!”

” लेकिन मेरे बच्चे ऐसा कैसे कर सकते हैं जी!.इस मकान ने उन्हें बहुत कुछ दिया है!”

“उस मकान ने भी हमें बहुत कुछ दिया है रागिनी!. लेकिन तुम ही सोचो कि आखिर हम उस घर के साथ क्या कर रहे हैं!”

सुभाष जी की बातें सुनकर अचानक रागिनी के माथे पर चिंता की रेखाएं उभर आई..

“आप जल्द से जल्द जेठ जी को उस मकान की मरम्मत के लिए कुछ रुपए भेज दीजिए!. और आप अगले महीने गांव चलने के लिए ट्रेन का टिकट भी कटवा लीजिए,.हम खुद चलकर उस मकान की मरम्मत करवाएंगे!”

अपनी पत्नी का अचानक बदला फैसला देखकर सुभाष जी आखिर पूछ बैठे..

“लेकिन वहां जाकर तुम करोगी क्या?”

“इस बार हम अपनी कुलदेवी की पूजा अपने पुश्तैनी मकान में करेंगे!.वह घर किसी हाल में बिकना नहीं चाहिए!”

अपनी पत्नी के विचारों में आए बदलाव देख सुभाष जी को तनिक भी हैरानी नहीं हुई। 

उनका अनुभव बता रहा था कि जब तक खुद पर नहीं बितती तब तक दूसरों के दुख का अनुभव इंसान कभी कर ही नहीं सकता।

                                                                                          -पुष्पा कुमारी “पुष्प”

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