“मैं सोच रहा था कि,.रिमझिम के विवाह में उसके लिए एक जोड़ी सोने की बालियां भी खरीद कर उपहार में दे दूं।”
अपनी भगिनी के विवाह में जाने की तैयारी कर रहे मनोहर ने अपने दिल की बात अपनी पत्नी मालती के संग साझा किया। लेकिन उसकी बात सुनकर मालती अचानक आग बबूला हो उठी..
“एक तो पहले ही आपने अपनी बहन बहनोई के पूरे परिवार के लिए कपड़े खरीद कर इतना खर्चा कर दिया है!. ऊपर से अब सोने की बालियां खरीदने का विचार आपके मन में आया कहां से?. रुपए पेड़ पर उगते हैं क्या?”
“अरे भाग्यवान!. भागनी का विवाह है तो मामा होने का कुछ तो फर्ज निभाउंगा ना!”
मनोहर ने मालती को समझाना चाहा लेकिन मालती ने ताना देते हुए मनोहर से सीधा सवाल कर दिया..
“बड़े आए फर्ज निभाने वाले!. सोने की बालियों के लिए रुपए कहां से आएंगे?”
“रुपयों का क्या है मालती!. कहीं ना कहीं से जुगाड़ कर ही लूंगा!. नहीं होगा तो सुनार की दुकान से बालियां उधार ले आऊंगा,.रूपए अगले महीने चुका दूंगा।”
मनोहर की बात सुनकर मालती का गुस्सा सातवें आसमान पर पहुंच गया..
“जितना चादर हो उतना ही पांव फ़ैलाना चाहिए!. सुनार से बालिया उधार लेकर बहन को खुश करने की कोई जरूरत नहीं है,.मैं कहे दे रही हूंँ!. वरना देख लेना।”
“क्या देख लेना!.मैंने सोच लिया है कि मैं अपनी भगिनी को उसके विवाह में अपनी तरफ से सोने की बालियां उपहार में दूंगा!. तो जरूर दूंगा!”
यह कहते हुए मनोहर उठकर कमरे से बाहर बरामदे में चला गया। रिमझिम के विवाह में इतना महंगा उपहार देने के प्रति अपने पति का उत्साह देख मालती से सहन नहीं हो पा रहा था।
उसने कुछ बात कर अपने दिल की तसल्ली पाने के लिए अपनी मांँ को फोन लगा दिया..
दूसरी तरफ मोबाइल की घंटी बज रही थी लेकिन कोई कॉल रिसीव नहीं कर रहा था। कई बार कॉल लगाने के बाद आखिर कॉल रिसीव हुआ..
“हेलो दीदी!”
कॉल मालती के छोटे भाई मनोज ने रिसीव किया था।
“मनोज!.मैं दीदी बोल रही हूंँ!.मांँ कहां है?”
छोटे भाई द्वारा अपनी मांँ के मोबाइल पर कॉल रिसीव किए जाने से मालती तनिक हैरान हुई।
लेकिन मनोज ने बहन की जिज्ञासा को समझते हुए उसे पूरी बात बताना जरूरी समझा..
“मांँ बाजार गई है!. और गलती से अपना मोबाइल घर पर ही छोड़ गई है,. अभी मैं घर पर था इसलिए आपका कॉल मैंने रिसीव कर लिया।”
“अच्छा अच्छा समझ गई!”
पूरी बात समझने के बाद मालती ने राहत की सांस ली। लेकिन मनोज ने आखिर पूछ लिया..
“माँ से कोई जरूरी काम था क्या दीदी?”
“क्या बताऊं मनोज!. तेरे जीजा जी ने तो मेरा दिमाग खराब कर रखा है!”
“क्या हुआ दीदी?. बताओ तो सही!”
“उनकी भगिनी है ना रिमझिम!.उसके विवाह में वो सोने की बालियां दे रहे हैं।”
“तो देने दो ना दीदी!”
“अरे तू पागल हो गया है क्या!. भगिनी के विवाह में इतना खर्चा करने की इन्हे क्या जरूरत है!”
“दीदी!.शादी ब्याह में भाई को रिश्ता तो निभाना ही पड़ता है ना!”
“लेकिन भाई!. रिश्ता अपनी हैसियत में रहकर निभाना चाहिए।”
“दीदी!. जहां तक मैं जानता हूंँ इतनी हैसियत तो हमारे जीजा जी की है ही कि वह अपनी भगिनी के विवाह में अपनी मर्जी का उपहार दे सके!.आखिर मामा-भगिनी का रिश्ता है,. निभाने दो दीदी!”
“रिश्ता निभाने का क्या है मनोज!.चाहे जितना भी बड़ा उपहार दो सामने वाले के लिए कम ही लगता है!”.
अपने छोटे भाई की बातों को काटती मालती बेपरवाह बोल गई लेकिन मनोज ने उससे पूछ लिया..
“दीदी आपके अनुसार शादी ब्याह में ऐसे रिश्ते कैसे निभाने चाहिए?”
“अरे भई!.रिश्ता तो एक जोड़ी कपड़े देकर भी निभाया जा सकता है!”
“दीदी यह तो आपने बहुत अच्छी बात बता दी!.मैं भी अब से रिश्ते ऐसे ही निभाऊंगा!”
“मैं कुछ समझी नहीं?.तू कहना क्या चाहता है?”
भाई की बात सुनकर मालती का माथा ठनका लेकिन मनोज ने अपनी बात पूरी की..
“दीदी मैं भी तो रिश्ते में किसी का मामा और किसी का भाई हूंँ!. मेरी भी तो भगिनी है!. आज नहीं तो कल विवाह तो उसका भी होगा,. मैं तब की बात कर रहा हूंँ।”
अपने ही बातों में उलझ चुकी मालती को अब अपने भाई को कुछ जवाब देते नहीं सूझ रहा था। छोटे भाई ने बातों ही बातों में उसकी आंखों पर पड़ा अपने पराए का पर्दा मानो अचानक एक झटके में हटा दिया था।