जीवन का उद्देश्य क्या है?
कल मैं एक सवाल सर्च किया गूगल पर। सवाल था, जीवन का उद्देश्य क्या है? उत्तर बहुत अधिक देखने को मिला। अलग-अलग लोगों का अपना अलग-अलग मत था। बहुत सारे उत्तर थे। किसी ने कहा धर्म करना जीवन का उद्देश्य है, किसी ने कहा ईश्वर नाम जप करना जीवन का उद्देश्य है, किसी ने कहा दान देना जीवन का उद्देश्य है, किसी ने कहा खुद को खुश रखना जीवन का उद्देश्य है, किसी ने कहा मोक्ष प्राप्त कर लेना ही जीवन का उद्देश्य है, किसी ने कहा यह जीवन एक घटना है बस यह घट गया ह, इसे ऐसे जी कर गुजर जाओ। किसी ने कहा जीवन एक बनवास है इसे काट कर वापस लौट जाओ। किसी ने कहा लोगों की भलाई करो, लोगों को चोट मत पहुंचाओ, पाप मत करो पुण्य कमाओ यही जीवन का उद्देश्य है। लेकिन इन तमाम प्रकार के उत्तरों से मैं संतुष्ट नहीं हूं इसमें से कोई एक भी उत्तर ऐसा नहीं था जिससे मुझे ऐसा लगे कि मेरे सवाल का जवाब मिल गया।
जीवन के उद्देश्य को समझे।
आप जब यह सवाल करते हो कि जीवन का उद्देश्य क्या है तो मुझे पता है कि आपको भी आस पास के लोगों से और आस पास के गुरुओं से, ऐसे तमाम प्रकार के बकवास सुनने को, पढ़ने को मिलेगा,या ऐसे ही उत्तर देखने को मिलेगा।
कोई बोलता है, ईश्वर महान है उसकी शरण में चले जाओ, कुछ धर्म के लोग बोलते हैं ईश्वर के सामने घुटने टेक दो वह सब संभाल लेगा इसमें सभी धर्म और संप्रदाय प्रधान है हालांकि सभी धर्म के लोगों ने यही कहा, गुरुओं ने यही कहा कि ईश्वर के सामने घुटने टेक दो।
मुझे यह बात उचित नहीं लगा और लगना भी नहीं चाहिए क्योंकि मैं थोड़ा विरोधाभासी किस्म का व्यक्ति हूं। मुझे नहीं लगता कि आप जिसे कहते हो कि ईश्वर महान है, मतलब ईश्वर के बाद महान शब्द को जोड़ते हो तो मुझे नहीं लगता कि वह आपको अपने सामने घुटने टेकने पर मजबूर करेगा ऐसा तो कोई शासक ही कर सकता है, सम्राट कर सकता है, राजा कर सकता है, जिसको कहीं ना कहीं भीतर से यह डर सताये जाता है कि मेरी गाद्दी पर कोई बैठ जाएगा या फिर मेरा मान अपमान होगा या फिर मैं अपना वर्चस्व नहीं करुंगा तो मुझसे कोई मजबूत बन जाएगा या खुद को मुझसे बड़ा समझने लगेगा। बस इसी प्रकार के डर जिनको सताता है वही सामने वाले को अपने सामने घुटने टेकने पर मजबूर करता है। और अगर ईश्वर है तो सबसे पहले ईश्वर के साथ आप महान शब्द जोड़ते हैं तो वह ईश्वर महान तो नहीं होगा जो आपको अपने सामने घुटना टेकने पर विवश करें, जो आपको बार-बार यहां पर जन्म दे।
जीवन दुख है।
एक बात बताओ अगर जीवन को ठीक से देखा जाए तो यह सिर्फ दुखों का घर है, दुखों का मेला है। हां उनके लिए जीवन दुख नहीं है जो अपनी मनमानी आचरण से जीते हैं। अपनी मनमानी जीवन जी रहे हैं, जो मर्जी वह कर रहे हैं, जिनके पास किसी प्रकार की नैतिकता नहीं है जिनके जीवन जीने का कोई नियम नहीं है, उनके लिए तो यह जीवन एंजॉय बनेगा लेकिन वह भी अधिक दिनों तक नहीं ।
एक योगी एक संत से पूछोगे जो वास्तव में ईमानदार है अपने कर्तव्य और निष्ठा के प्रति और जो वास्तव में त्यागी है उससे जाकर पूछना अगर वह तुम्हें सच-सच बताना शुरू कर दे तो तुम्हें पता चलेगा कि यह जीवन नर्क से कम नहीं। तो मुझे नहीं लगता कि ईश्वर जैसा कोई है जो नरक बनाकर और तुम्हें छोड़ देता है कष्ट को सहन करने के लिए, दुख भोगने के लिए।
जीवन का उद्देश्य।
यहां यह सवाल बहुत मायने रखता है। अगर एक तौर से देखा जाए तो, कई सवाल के उत्तर तो मिल ही जाते हैं;
लेकिन जब बात आती है जीवन का उद्देश्य क्या है तो इस प्रश्न से इन सभी उत्तरों का कोई लेना-देना नहीं है। और चुकि क्योंकि यह उत्तर बहुत अधिक हैं और जिस प्रश्न के उत्तर बहुत अधिक हो यानी एक से अधिक हो तो ज्यादातर संभावना यह होती है कि उस प्रश्न का जवाब नहीं दिया जा रहा है बस आपको वर्गलाया जा रहा है। यानी कोई सटीक उत्तर न होने के कारण आपको बस बहलाया जा रहा है; क्योंकि जिस विद्यार्थी के पास प्रश्न के सही उत्तर ना हो वह तो बस वर्गलाएगा, बातों को घुमा फिरा के बोलना चाहेगा। हालांकि वह सारी बातें प्रश्न की इर्द-गिर्द ही घूमती हैं लेकिन उनका प्रश्न से कोई लेना-देना नहीं होता। उसके उत्तरों का प्रश्न से कोई लेना-देना नहीं होता क्योंकि उसे उत्तर तो पता नहीं लेकिन उसे किसी तरह जवाब देना है तो बस वह वर्गलाएगा, इधर-उधर घूम के आपसे बात करेगा और कुछ नहीं करेगा।
जीवन के उद्देश्य को समझें।
अब सवाल उठाता हैं कि फिर आखिर क्वेश्चन तो वहीं रह गया प्रश्न तो वहीं रह गया की जीवन का उद्देश्य क्या है? मुझे पता है जो भी यह पढ़ रहा है उसके मन में यह भी आ रहा होगा कि फिर अगर इस पर होते ही नहीं तो फिर हमें किसने बनाया और जीवन का उद्देश्य धर्म कमाना नहीं होता है तो फिर पाप पुण्य हुआ ही क्यों? लोगों का भला बुरा होता क्यों है ? यह सारे तमाम प्रकार के सवाल दिमाग में घर बना रहे होंगे, मुझे पता है।
लेकिन यकीन मानिए यह तनिक भी सटीक उत्तर नहीं हुआ कि जीवन का उद्देश्य धर्म करना है, किसी का मदद करना है, किसी के भलाई करना है। अब मान लीजिए कोई गरीब परिवार है, उसके घर में दो जन है पति और पत्नी। उनके 10 बच्चे हैं जो की साधारणता ऐसा देखने को मिलता है जितना गरीब फैमिली रहता है उसमें उतना ही अधिक बच्चे रहते हैं। तो अब आप उनका हेल्प कीजिए, उनकी मदद कीजिए। क्योंकि आपको पुण्य कमाना है और आपके जीवन का उद्देश्य यही है। शायद आप मान बैठे हो किसी धर्म गुरुओं के बताए हुए बातों से या फिर किसी पुण्य आत्माओं की लिखी हुई किताबों को पढ़कर शायद आपने यही जाना हो; लेकिन तनिक विचार कीजिए उस परिवार में 10 बच्चों को लाया कौन? क्या उसके जिम्मेदार आप हैं? क्या उनके माता-पिता को उनके प्रति कोई कर्तव्य नहीं बनता? क्या उनके प्रति कोई सोच नहीं था? क्या कोई उनको पता नहीं था कि हम इतने बच्चे पैदा करेंगे तेरी पालेंगे कैसे। धर्म करना अच्छी बात है, लेकिन किसी को डरा कर किसी पर धर्म को थोपा नहीं जा सकता। धर्म कोई थोपने वाली चीज नहीं है। धर्म अपने आप हो जाता है।
लेकिन प्रश्न यहां यह है कि जीवन का उद्देश्य है क्या? तो जान लीजिए, जीवन का उद्देश्य मोक्ष नहीं है, जीवन का उद्देश्य धर्म करना नहीं है, जीवन का उद्देश्य किसी की भलाई करना नहीं है और बुराई करना नहीं है। जीवन का उद्देश्य पुण्य करना नहीं है पाप करना भी नहीं है। फिर जीवन का उद्देश्य है क्या?
जीवन का सही उद्देश्य।
जहां तक मुझे पता है जीवन का उद्देश्य एक सहभागिता है। यह अपने होने में ही पर्याप्त है। अब क्या होना है क्या नहीं होना है यह आप ही तय करेंगे आपको क्या होना है। आपको दुष्ट आत्मा होना है, आपको पुण्य आत्मा होना है, आपको संत होना है, आपको बिजनेसमैन बनना है, आपको समाज सेवक बनना है, यह सब मायने नहीं रखते हैं कि आपको क्या बनना है। वह तो सिर्फ एक किरदार है। आप किस किरदार को जीना पसंद करते हो यह आप पर निर्भर करता है बस। that’s all। जीवन का उद्देश्य सिर्फ मौजूद होना है। खुद को बहुत बड़ा मानकर मत बैठ जाना! तुम बहुत बड़े संत हो, तुम बहुत बड़े बिजनेसमैन हो, तुम बहुत बड़े हीरो हो, तुम बहुत बड़े कलाकार हो, यह सब सिर्फ एक किरदार है। और किरदार तो अनगिनत हैं । इनमें से किसी एक को यह मानकर बैठ जाना कि तुम बहुत बड़े हो।
असल में तुम कुछ भी नहीं हो तुम बस एक भूमिका निभा रहे हो अलग-अलग किरदारों के जो तुमने खुद पसंद कर रखा है। किसी को पसंद है कि वह संत बन जाए, किसी को पसंद है कि वह भोग विलास करें। किसी को पसंद है कठोर साधना करें और उसके फल प्राप्त करें और चमत्कार करना शुरू करें ताकि उसे उपलब्धियां मिले। उसके नाम हो लेकिन कुछ समय बाद वह भी झूठा हो जाता है; क्योंकि जीवन तो बस अपने आप में सीमित है। यह एक दिन समाप्त हो जाएगा। आप कुछ भी कर लीजिए, आप कितने बड़े आदमी है यह मायने नहीं रखना आप बस समाप्त हो जाएंगे यह सच है, कड़वा सच है। तो मुझे लगता है कि इंसान यहां सिर्फ मौजूद है मौजूद यानी नेचर के साथ अपनी मौजूदगी को जतला रहा है।
जीवन का कोई उद्देश्य है ही नहीं जीवन बस मौजूद होने में है। उपस्थित होने में है। आपकी और हमारी सिर्फ एक उपस्थित है जैसे बाकी सारे जीव जंतुओं की है। इस संसार में इस ब्रह्मांड के अंदर तो यह सिर्फ एक उपस्थित है। कोई मायने रख नहीं रखता कि आप कितना दिन उपस्थित रहेंगे, कितना दिन नहीं रहेंगे। आप नहीं रहेंगे तो भी उपस्थित हैं। मान लीजिए कि आप कोई किताब पढ़ रहे हैं या फिर यह पोस्ट पढ़ रहे हैं। किसी सिस्टम में पढ़ रहे होंगे या आपके हाथ में कोई पेन है। मान लीजिए कि आपके हाथ में कोई पेन है। वह क्या है?” एक वस्तु है” अब उस वस्तु को आप सोच रहे होंगे की स्याही खत्म होने के बाद कोई काम नहीं है और यह समाप्त हो गया। तो आप ऐसा सोच रहे हैं लेकिन ऐसा होता नहीं है उसकी स्याही समाप्त जरूर हो गई है खत्म जरूर हो गई है लेकिन वह समाप्त नहीं हुई है क्योंकि वह स्याही को आपने रूपांतरित किया है और कुछ नहीं। वह समाप्त नहीं हुआ इस संसार में कुछ भी समाप्त नहीं होता जैसे उस स्याही को आपने लिख दिया है किसे पन्ने पर। और पेन से तो वह खत्म हो गई समाप्त हो गई लेकिन वह रूपांतरित हुई है यानी अब वह कॉपी पर है, नोटबुक पर है, ठीक उसी प्रकार उस पेन को भी जिसकी स्याही समाप्त हो गई है, खत्म हो गई है। आप ऐसा सोच रहे हैं। एक प्रैक्टिकल कीजिए अब आप उस पेन को जलाइए जिस कि स्याही समाप्त हो गई है। पेन जलने के बाद आपको लगता है कि पेन समाप्त हो गया। पेन खत्म हो गया; लेकिन ऐसा नहीं होता। उस पेन को भी अगर आप जला देते हैं तो भी वह खत्म नहीं होता। हां आपको ऐसा जरूर लगेगा कि वह खत्म हो गया लेकिन वह खत्म नहीं होता वह बस रूपांतरित हुआ है। यानी आपने उस पदार्थ को जलाया तो वह अब राख के रूप में रूपांतरित हो गया। इसका मतलब यह नहीं कि वह खत्म हो गया। आपने सिर्फ उसे परिवर्तित किया है। वह भी इस तत्व से बना है, जिस तत्व से आप बने हो। वह तो बना उसी तत्वों से जिस तत्व से पेड़ पौधे पानी यह सारी चीज बनी हैं। इस संसार में तत्व जो पांच प्रकार के पाए जाते हैं उन्हीं तत्वों से अलग-अलग प्रकार की चीजे बनती है। जैसे कुम्हार एक ही मिट्टी से अलग-अलग प्रकार के बर्तन बनाता है। परमात्मा ने भी बहुत सारी रचनाए कर रखी है और यह होती जा रही है हम बस सिर्फ मौजूद हैं। खुद को यह नहीं मानना की बहुत बड़ा हैं ,जीवन का उद्देश्य जैसा क्या है यह कोई सवाल ही नहीं है जीवन का उद्देश्य क्या है यह कोई सवाल ही नहीं है क्योंकि जब आप यह सवाल कर रहे हो ना जीवन का उद्देश्य क्या है, इसका मतलब आप यह सोच रहे हो आप खुद को बहुत बड़ा सोच रहे हो। यह एक अहंकार से सवाल निकलता है यानी आप खुद को कुछ सोच रहे हो खुद को कुछ बनाने की कोशिश कर रहे हो। यानी आप यह नहीं सोच रहे हो कि खुद की मौजूदगी की पेड़ पौधे किसी से सवाल करने नहीं जाते हैं कि मैं क्यों हूं? धरती किसी से सवाल करने नहीं जाती कि मैं क्यों हूं? नदी, तालाब और समंदर यह किसी से सवाल करने नहीं जाते हैं कि मैं कौन हूं? आकाश में उड़ते हुए बादल किसी से सवाल नहीं करते कि मैं कौन हूं। पशु पक्षी सवाल नहीं करते कि मैं कौन हूं? लेकिन इंसान जरूर सवाल कर लेता है कि मैं कौन हूं मेरे जीवन का उद्देश्य क्या है और जाहिर सी बात है कि उसमें सोचने और समझने की शक्ति है, क्षमता है इसलिए वह सवाल कर लेता है । लेकिन जो यह सवाल करते हैं वह कहीं ना कहीं उसके हृदय के किसी न किसी कोने में जो विचार उत्पन्न होते हैं उसके मन में उसके स्वाभाविक रूप से यह अहंकार को सूचित करते हैं। क्योंकि उस व्यक्ति ने खुद को कुछ न कुछ मान रखा है। यानी उसके भीतर मैं है,जब तक “मैं” है तब तक यह सवाल उठाता रहेगा की जीवन का उद्देश्य क्या है।मैं कौन हूं ? अरे भाई हकीकत यह है कि तुम कुछ नहीं हो। तुम सिर्फ एक फसल हो और इस धरती के फसल हो जिस तरह पेड़, पौधे, पशु-पक्षी हैं ना! जिस तरह किसान फसल उगाता है ना, धरती में इस तरह तुम भी एक फसल हो और यह निश्चित है कि तुम कुछ भी कर लो कितने भी हरे-भरे हो जाओ एक दिन कट जाओगे। जीवन का उद्देश्य कुछ होने में नहीं है। यह तय आप करेंगे कि आप क्या करना चाहते हैं। आपकी खुशी किसमे है। आप पाप करें या पुण्य करें यह मायने नहीं रखता फल सबका मिलता है। आप किस प्रकार के फल को चखना चाहते हैं? कोई खट्टा फल चखना चाहता है कोई मीठा फल चखना चाहता है कोई कड़वा फल चखना चाहता है। तो आप किस प्रकार के फल चाहेंगे जिस प्रकार के फल चाहेंगे उसकी प्राप्ति के लिए आपको वैसा कर्म भी करना पड़ेगा। बस यह मत समझिए कि जीवन का उद्देश्य क्या है जीवन का उद्देश्य सिर्फ मौजूद होने में है और उसके बाद आप करना क्या चाहते हैं किस किरदार को जीना चाहते हैं आपके ऊपर निर्भर करता है। इसको कोई आपके ऊपर थोपता नहीं है। हां अगर आप सोच रहे होंगे कि फिर हमारी उत्पत्ति क्यों हुई? कैसे हुई? यह क्यों हो रहा है तो भाई आप प्रकृति के एक हिस्सा है। तो जाहिर सी बात है की उत्पत्ति होगी। आपने यह मान रखा है की उत्पत्ति हो गई आपकी हकीकत यह है कि आपकी कोई उत्पत्ति नहीं हुई और कोई विनाश भी नहीं होने वाला है। आप बस मौजूद हैं अलग-अलग किरदार अलग-अलग रूपों में। आप सिर्फ एक कण हैं प्रकृति के अलग-अलग प्रकार के कण होते हैं ना! मिट्टी चट्टाने बहुत प्रकार की चट्टानें भी हैं इस तरह बहुत प्रकार के पेड़-पौधे हैं पशु-पक्षी हैं। कोई फर्क नहीं पड़ता कि कोई जीव जंतु है कि कोई निर्जीव वस्तु है यह सब एक भूमिका निभा रहे हैं प्रकृति यानी नेचर को पूरा करने में। ठीक उसी प्रकार आप भी एक भूमिका की तरह ही जी रहे हो। एक भूमिका निभा रहे हो प्रकृति को पूरा करने में। आप भी इस धरती के फसल की तरह ही हो जैसे धान-गेहूं बहुत प्रकार के बीच जो धरती में उगते हैं और फिर एक दिन समाप्त हो जाते हैं, नष्ट हो जाते हैं।
©® संदीप कुमार तिवारी श्रेयस
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बेहद सार्थक विश्लेषण दिया है आपने, हार्दिक बधाई 💐
Thankh u so much jee