इज़ाफ़त में मात्रा गड़ना के नियम।

ग़ज़ल लिखना सीखे भाग-10

दोस्तों पिछले एपिसोड में हम इज़ाफ़त के बारे में समझ रहे थे,जिन्होंने पिछला एपिसोड ग़ज़ल लिखना सीखें भाग-9 नहीं पढ़ा है तो कृप्या एक बार उसे जरूर समझ ले ताकि आपको ये वाला भाग अच्छे से समझ में आ सके।
तो मित्रों आज हम जानेंगे इज़ाफ़त में मात्रा गणना के नियम।

इज़ाफ़त में मात्रा गड़ना के नियम।

इज़ाफ़त लगने के बाद दोनो शब्द जुड़े हुए होते हैं जैसे- हम लिखे ‘दिल का दर्द’ तो यह इज़ाफ़त लगने के बाद ‘दर्दे-दिल’ हो जाएगा,लेकिन आप यह भी जान ले कि हर्फ़-ए-इज़ाफ़त का मूल वज़्न हमेशा एक ही होता है।
इज़ाफ़त लगने के बाद शब्दों के क्रम आपस में पलट भी जाते हैं जैसे- ‘दिल्ली शहर’ को इज़ाफ़त लगने के बाद हम शह्र-ए-दिल्ली लिखेंगे।
हर्फ़-ए-ऊला का आख़िरी अक्षर (जिसके अक्षर में इज़ाफ़त के बाद ‘ए’ स्वर को जोड़ा जाता है।) यदि लघु मात्रिक हो तो हफत के इज़ाफ़त जुड़ने के बाद भी लघु मात्रिक ही रहता है। जैसे👇
माशूक का राज़’ इज़ाफत के बाद ‘राज़े माशूक’ हो जाता है। इसमें राज़ का बज्न 21 है शब्द का आख़िरी व्यंजन अर्थात् ज़ लघु मात्रिक है इसमें ‘ए’ जुड़ कर ‘ज़े’ होता है, परन्तु यह फिर भी लघु मात्रिक ही रहता है और राजे- माशूक का मूल वज़न 21221 होता है। इसका एक और उदाहरण दर्द-ए-दिल है जिसका मूल वज़न 212 है।
हर्फ़-ए-ऊला का आख़िरी अक्षर यदि दो व्यंजन के योग से दीर्घ रहता है तो इज़ाफ़त के बाद ‘ए’ स्वर योजित होने पर दोनों व्यंजन का जोड़ टूट जाता है और वह दो स्वतंत्र लघु हो जाते हैं। उदाहरण – ‘नादान दिल’ इज़ाफ़त द्वारा ‘दिले नादाँ’ हो जाता है।

दोस्तों एक बात आप जान ले यहाँ से कुछ नियम ऐसे भी हैं जिन्हे अगर लिखा जाए तो पोस्ट बेकार में ही बहुत लंबा हो जाएगा और आप सभी को बोर भी करेगा,आप बस इतना समझ ले कि आपको ग़ज़ल लिखना है तो बहुत ज्यादा जरूरी है कि आप उस्ताद शायरों की ग़ज़लें पढ़ना भी शुरु कर दे उससे आपको शब्दों पे पकड़ मजबूत होगी।

नोट:- कुछ शब्द ऐसे भी हैं जो हिंदी के अनुसार अगर आप हिंदी शब्दकोश में खोजेंगे तो वो आपको नहीं मिलेगा जैसे अगर आप लिखते हैं दर्दे-दिल तो इसमें अगर आप ये सोच रहे हैं कि दर्दे शब्द को हिंदी शब्दकोश में देखे तो यह संभव नहीं।
मैं आपको पहले भी समझा चुका हूँ कि ग़ज़ल बोलने के हिसाब से लिखी जाती हैं और ग़ज़ल की बाबत(ग्रामर) हिंदी व्याकरण से थोड़ा अलग है।

इतना ध्यान रहे:- इज़ाफ़त का नियम उर्दू भाषा को, अरबी और फ़ारसी से मिला है तथा यह उर्दू के भाषा ग्रामर में मान्य है, किंतु हिन्दी के भाषा व्याकरण में मान्य नहीं है; इसलिए इज़ाफ़त केवल उन शब्दों में लगाना चाहिए जो मूलतः अरबी, फ़ारसी के हों। संस्कृत से निकले शब्दों में इज़ाफ़त नियम बिलकुल मान्य नहीं होगा। जैसे देखे:-‘दिल का दर्द’ को ‘दर्द-ए-दिल’ तो किया जा सकता है, परन्तु ‘उर के घाव” को ‘घावे-उर” नहीं किया जा सकता है।
हिन्दी और उर्दू के शब्द को मिला कर इज़ाफत करना भी गलत व अस्वीकृत है जैसे – दिले-नादाँ की जगह हृदये-नादाँ करना सर्वथा अनुचित है। यह भाषा के प्रयोग का अमान्य व अस्वीकृत होगा।

आज इतना ही मिलते हैं फिर अगले एपिसोड में तबतक के लिए जय हिंद🇮🇳

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