ग़ज़ल लिखना सीखे भाग-9
ग़ज़ल में शब्दों को संयुक्त करने का नियम।
ग़ज़ल लिखनेवालों के लिए यह जानना बेहद जरूरी है
एक विशेष नियम के अनुसार कुछ ऐसे शब्द हैं जिनको आपस में जोड़कर लघु अक्षर को दीर्घ बनाया जाता है। इस नियम को अलिफ़-वस्ल भी कहा जाता है।
अलिफ़-वस्ल क्या है?
अलिफ़-वस्ल एक ऐसी विशेष स्थिति है जिसमें दो शब्दों को जोड़कर उसके मात्रा तथा उच्चारण को बदला जाता है।
तो दोस्तों चलिए अब शब्द जोड़ने की कला को समझते हैं।
इससे पहले कि हम आगे बढ़ें; उन सभी नए पाठकों से अनुरोध है कि हमारे ग़ज़ल लिखना सीखे भाग-8 जरूर पढ़ें।
तो दोस्तों आइए निम्नलीखित उदाहरण से समझे जहाँ कुछ शब्द मात्रा के साथ दिये जा रहे हैं।👇
मूल शब्द | संयुक्त करने के बाद
21 22 222
काम आया कामाया
बाज़ आए बाज़ाए
याद आया यादाया
21 212 2212
सात आसमाँ सातासमाँ
2212 1212
हम और तुम हमौर तुम
तुम और मैं तुमौर मैं
उम्मीद है आप सभी को कुछ-कुछ समझ आया होगा आगे ग़ज़ल के कुछ अश’आर के साथ उदाहरण दिया जा रहा है उसे भी समझे।
जैसे👇
2122, 2122, 212
जौर से बाज़ आए पर बाज़ आएँ क्या।
कहते हैं हम तुझको मुँह दिखलाएँ क्या।
रात दिन गर्दिश में हैं सात आसमाँ,
हो रहेगा कुछ न कुछ घबराएँ क्या।
~मिर्ज़ा ग़ालिब
यहाँ बाज़ आए को बाज़ाए अनुसार उच्चारण करके 222 मात्रा गणना की गई है और फिर ए कि मात्रा को गिरा दिया गया है तथा सात आसमाँ को सातासमाँ अनुसार 2212 मात्रा गिनी गई है।
इतना तक तो आपने जान लिया लेकिन क्या आपको पता है कि यह किस विशेष स्थिति में किया जाता है? चलिए उसे भी समझते हैं।
ग़ज़ल में किस विशेष स्थिति में दो शब्दों को एक साथ जोड़ा जाता है?
जब किसी शब्द का. अंत व्यंजन से हो और जिसमें कोई मात्रा न लगी हो फिर उसके बाद के शब्द का प्रथम अक्षर कोई स्वर हो तो उच्चारण के अनुसार पहले शब्द के अंतिम व्यंजन और दूसरे शब्द के पहले स्वर का योग किया जा सकता है। यहाँ फिर से मैं आप सभी को बता दूँ कि ग़ज़ल में ऐसे बदलाव सिर्फ उच्चार के अनुसार ही होता है ना कि लिखने के अनुसार। आइए उदाहरण देखे👇
बात आ [बा 2 त1 आ2] में ‘बात’ शब्द का आखिरी अक्षर त एक व्यंजन है तथा इसमें कोई मात्रा नहीं लगी है और इसके बाद अगला शब्द आ एक स्वर है तो बात+आ को अलिफ़ वस्ल (जोड़)कर के ‘बाता’ भी पढ़ा जा सकता है जिसका वज़्न बात 21 आ2 से बदल कर बा2 ता2 अर्थात् 22 हो जायेगा।
दोस्तों ग़ज़ल में एक और नियम आता है जिसे हम इज़ाफ़त कहते हैं,आइए इसे भी समझते हैं।
इज़ाफ़त किसे कहते हैं? ग़ज़ल में इज़ाफ़त क्या है?
तो दोस्तों जिस प्रकार हिन्दी में समास का प्रयोग करके दो शब्दों को आपस में हाइफन द्वारा जोड़ा जाता है उसी तरह उर्दू भाषा में इज़ाफ़त का नियम है जिसके द्वारा दो शब्दों को जोड़ा जाता है,जैसे:- दिल का दर्द को दर्द-ए-दिल लिखना,नादान दिल को दिल-ए-नादाँ लिखना। नीचे उदाहरण स्वरूप कुछ अश’आर दिये जा रहे हैं उसे भी समझे👇
सोचते रहना ‘शब-ए-ग़म’ में इज़ाफ़त करना
है दिया बन के हवाओं से मोहब्बत करना
‘हुस्न-ए-जानाँ’ पे कुछ ऐसी थी जवानी आई
पड़ गया हम को रफ़ीक़ों से रक़ाबत करना
‘रौनक़-ए-दिल’ निखार कर रहिए
उस का ग़म है सँवार कर रखिए
थके जिस्मों थकी रूहों के सब मा’नी बदलते हैं
विसाल-ए-हिज्र के मौसम में उर्यानी बदलते हैं
तुम्हारा ज़िक्र करते हैं दर-ओ-दीवार से अक्सर
बड़ी मुश्किल से हम इस घर की वीरानी बदलते हैं
~वरूण गगनेज़ा वाहिद
ऊपर लिखे शे’र के पंक्तियों में ये जो-‘शब-ए-ग़म’,हुस्न-ए-जाना,रौनक-ए-दिल,विसाल-ए-हिज्र,दर-ओ-दीवार ये सभी इज़ाफ़त के नियम द्वारा शब्दों में बदलाव कर के बनाए गए हैं। इक मुकम्मल ग़ज़ल लिखने के लिए इज़ाफ़त को समझना भी बेहद जरुरी है।
नोट:- इज़ाफत के ‘ए’ को ‘हर्फ-ए-इज़ाफ़त” कहते हैं। जैसे- ‘नग्मा-ए- पुरदर्द’ में ‘ए’ को ‘हर्फ़-ए-इज़ाफ़त’ कहते हैं। ।।- लेख के इज़ाफ़त के पहले शब्द को हर्फ-ए-ऊला कहते हैं। उदाहरण – नग्मा-ए-पुरदर्द’ में ‘नग्मा’ हर्फ़-ए-ऊला है। ।।।- लेख में इज़ाफ़त के दूसरे शब्द को हर्फ़-ए-सानी कहेंगे। उदाहरण – ‘नग्मा-ए-पुरदर्द’ में ‘पुरदर्द’ हर्फ़-ए-सानी है।
आज इतना ही फिर मिलते हैं अगले भाग में तबतक के लिए जय हिंद 🇮🇳👍