ग़ज़ल लिखना सीखें 

ग़ज़ल में रुक्न का भी अपना एक महत्व होता है।
पिछले एपिसोड यानी ग़ज़ल लिखना सीखे भाग-5 में हमने ग़ज़ल की तक़्तीअ को भी जाना था,अगर आप सभी का भाग-5 छुट गया हो; पहले उसे जरूर पढ़ें। अब समझते हैं रुक्न क्या है।
रुक्न क्या है?
रुक्न एक मात्रा पुंज है यह एक निश्चित मात्रा पुंज है यह आपने पहले भी पढ़ा है।
अब समझते हैं रुक्न के भेद।
रुक्न के कितने भेद होते हैं?
रुक्न के दो प्रकार होते हैं।

  1. सालिम रुक्न जो कि एक मूल रुक्न है।
  2. मुज़ाहिफ़ रुक्न,इसे उप रुक्न भी कहा जाता है।

सालिम रुक्न के आठ प्रकार हैं जो हम आपके समझने के लिए मात्राओं के साथ नीचे दे रहे हैं।
फ़ाऊलुन मुतकारिब 122
फ़ाइलुन मुतदारिक 212
मुफ़ाईलुन हज़ज 1222
फ़ाइलातुन रमल 2122
मुस्तफ़्इलुन रजज़ 2212
मुतफ़ाइलुन कामिल 11212
मफ़ाइलतुन वाफ़िर 12112
फ़ाईलातु 2221

  1. मुज़ाहिफ़ रुक्न-आठ मूल रुक्न को हम घटा दे तो उप रुक्न तैयार हो जाएंगे जैसे कि नीचे दर्शाया गया है।
    2 (फ़ा)
    21 (फ़ेल)
    12 (फ़अल)
    22 (फ़ैलुन)
    121 (फ़ऊल)
    112 (फ़इलुन)
    221 (मफ़ऊल)
    222 (फ़ाइलुन)
    1122 (फाइलटून)
    1212 (मुफ़ाइलुन)
    2112 (फ़ाइलतुन)
    1121 (फ़इलान)
    1211 (मफ़ाइलु)
    21221 (फ़ाइलातान)

किसी मूल रुक्न से उपरुक्न बनाने का नियम तथा संख्या निश्चित है जैसे – रमल (2122) मूल रुक्न के 11 ज़िहाफ़ तथा 17 फुरूअ (ज़िहाफ़ की उपशाखा) होते हैं तथा सभी का एक निश्चित नाम है। बह्र के निर्माण में इन उप रुक्न की भी महत्वपूर्ण भूमिका होती है।
सभी ग़ज़ल इन आठ सालिम अर्कान व उनके मुज़ाहिफ़ अर्कान के अनुसार ही लिखी/कही जाती हैं।

आइए अब बह्र के भेद को समझा जाए।
इसे भी हम दो भागो में बांट सकते हैं।
1.पहला अर्कान की संख्या अनुसार
और 2.दूसरा रुक्न की अवस्था अनुसार
अर्कान की संख्या अनुसार बह्र के भेद देखे।
बहर के कितने भेद होते हैं?

जैसा कि आपको पता है बह्र को दो भागो में बांटा गया है, अगर हम पहले वाले की बात करे तो अर्कान के अनुसार, बह्र के अर्कान में भी समान्यतः चार रुक्न होते हैं। यह बात शाइर पे निर्भर करती है कि वो कितने रुक्न पे लिखना पसंद करते हैं। वैसे इन चारों के नाम मुसना, मुरब्बा, मुसद्दस, मुसम्मन है।
हम पहले की बात करे तो मुसना का शाब्दिक अर्थ ही होता है दो टुकड़ेवाला। इसमें बह्र के दोनों मिस्रों में दो अर्कान होते हैं जिसमें शे’र के एक मिसरे में एक ही रुक्न होता है।
2.मुरब्बा– मुरब्बा का शाब्दिक अर्थ है-चौकोर अर्थात जिसमें चार पहलू हो,इसके शे’र के एक मिसरे में दो अर्कान होते हैं।
जैसे ग़ज़ल का एक शे’र देखे
फँस गया हूँ/आफतों में
आज हूँ मैं /पागलों में
क्या सुकूँ तू/ने कमाया
क्या मिला है/फ़ासलों में
(2122/2122)
प्रस्तुत अश्आर के प्रत्येक शे’र में मात्र चार अर्कान का ही प्रयोग हुआ है।
3.मुसद्दस-इसका शाब्दिक अर्थ है छः, इसमें प्रत्येक शे’र के एक मिसरे में तीन अर्कान होते हैं।

1222 1222 1222
त’आरुफ़ इश्क़ से हमको हुआ लेकिन,
सताता है मुझे ये हादसा बनना।
यहाँ जो ठीक से इंसा नही बनता,
उसी ने चुन लिया है देवता बनना।
                     ~संदीप कुमार तिवारी ‘श्रेयस’

ऊपर्युक्त अश’आर मैंने बह्र के साथ दे दिया है अब उसमें अर्कान की पहचान आप स्वयं करे तो अच्छा है।
4.मुसम्मन – मुसम्मन का शाब्दिक अर्थ है आठ पहलू वाला। जिस बह्र के दोनों मिसरों में कुल आठ अर्कान हों, अर्थात् जिस शे’र के एक मिसरे में चार अर्कान हों उस ग़ज़ल की बह्र के नाम के साथ मुसम्मन लिखते हैं। उदाहरणस्वरूप –
आज उस नाजुक अदा की याद फिर आयी बहुत
जिससे मेरी एक मुद्दत थी शनासाई बहुत
राहे-उल्फ़त में निकलना था तकाज़ा-ए-जुनू
वैसे मैं भी जानता था होगी रुसवाई बहुत
(पाशा रहमान)

प्रस्तुत अश’आर के प्रत्येक शे’र में आठ अर्कान का प्रयोग हुआ है, अतः एक मिसरे में चार अर्कान फ़ाइलातुन (2122) हैं। इस प्रकार इस बह के नाम के साथ मुसम्मन लिखा जायेगा। आख़िरी रुक्न में फ़ाइलातुन को जिहाफ़ द्वारा फ़ाइलुन किया गया है।
इसी प्रकार चार से अधिक रुक्न होने पर भी ग़ज़ल कही जाती है, परन्तु ऐसी ग़ज़लें बहुत कम ही देखने को मिलेंगी आपको।

बह्र में रुक्न के अनुसार इसके भेद

रुक्न के अवस्था अनुसार इसके तीन भेद हैं।

1.मुफ्रद बह्र 2.मुरक्कब बह्र 3.मात्रिक बह्र
रुक्न की अवस्था अनुसार बह के तीन भेद हैं
2.1 मुफ्रद बहर – केवल एक प्रकार के रुक्न के प्रयोग से जो बहर निर्मित
होती है उसे मुनद बहर करते हैं। मुझद बह के दो भेद हैं –
2.1.1 मुनद सालिम
2.1.2 मुनद मुज़ाहिफ़
2.2 मुरक्कब बहर – दो रुक्न के संयोग से जो बहर निर्मित होती है उसे मुरक्कब बहर कहते हैं। मुरक्कब बहर के दो भेद हैं-
2.2.1 मुरक्कब सालिम
2.2.2 मुरक्कब मुज़ाहिफ़
2.3 मात्रिक बहर

आज इतना ही, अगले भाग में हम मात्रा गिराने के बारे पढ़ेंगे।

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