मुक्तक


ज़मीं को आसमाँ जितना  जहाँ में कौन समझेगा।
मुझे   मालूम  है  लोगो  वो  मेरा  मौन   समझेगा।
जिसे मैं दिल समझता  हूँ जिसे मैं  जाँ समझता हूँ,
अगर वो ही नहीं समझा मुझे फिर कौन समझेगा।

कभी पानी में  बूंदे  हैं  कभी  बूँदों  में  पानी  है।
मुहब्बत  करनेवालों  पे  सभी  बातें  बेगानी  है।
मुझे दीवाना कहते हो यही दीवानापन जिस  में,
कभी मोहन दीवाने  हैं  कभी  राधा  दीवानी  है।

          ©️®️संदीप कुमार तिवारी ‘श्रेयस’🪔

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