दुर्मिल सवैया


इक बात  तुझे  समझा  न  सकी,
पिय   प्रीत  पगे  पल  देख  रही।
फिर पास  नहीं  सजना  तुम  तो,
यह सावन की  रुत भी  बहकी।।
इस   आस  धरे  यह  प्राण  पिया,
मिल ले इक  बार सजा  न  सही।
पलकें   पल   में   पथ  देख  रही,
प्रिय चातक सी पथ में न बही ।।

        ~डाॅ•निशा पारीक

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