साहित्य-सागर
खिलते जब-जब पुष्प हैं,
सुरभित करें जहान।
लेने नित मकरंद को,भ्रमर करे रसपान।।
भ्रमर करे रसपान,देख कर पुष्प सजीले।
प्रणय भाव से मत्त,हुआ सौरभ को पी ले।।
प्रकृति दत्त सौगात,प्रेम के पल जो मिलते।
भ्रमर मनाए मोद,पुष्प जब-
जब हैं खिलते।।
~डाॅ निशा पारीक