कान्हा तेरे मुख मंडल की,
है ये आभ निराली।
घुँघराले केशों के सँग में,
मोर पंख की डाली।।
भाल तिलक कजरारी आँखे,
भौं धनुषाकृत प्यारी।
अधर सुधारस कमल पंख द्वै,
दंत कली सुख कारी।।
कर्ण छटा मकराकृत कुंडल,
श्याम गात सुकुमारी।
चन्द्र कला चितचोर चन्द्रिका,
मोहन छबि चित हारी।।
मन मधुकर है कमल क्रोड़ में,
माया मति भरमायी।
बाल रूप ये बसत नयन में,
मन चरणों में वारी।।
~डाॅ•निशा पारीक