साहित्य-सागर
नश्वर नेह तुम्हें क्या पाऊँ,
झूठी जग की प्रीत मनाऊँ।
कण कण में कृष्ण रमे हो,
सरल स्नेह से तुम्हें रिझाऊँ।।
देख रही थी भोर में सुंदर स्वप्न सुहान,
पीताम्बर सुघड सरल, श्यामल श्याम सुजान।
गलबाँहे डाले सरल,बृषभानुजा थी साथ,
मुख चन्दा सी चन्द्रिका,बन चन्द प्रभा जहान।।
~डाॅ•निशा पारीक