साहित्य-सागर
राम सभा सबरी सुख सोहत, काम निकाम बसे सुविचारी|
सागर सोहत मोह सखी नित, प्रीत पगा मन माह बिसारी ||
मों मन आज बसो अवधी मह, मीत सुहागन प्रीत कुमारी |
आन मिलो मन माह निवासन, ध्यान धरे वृषभानु दुलारी ||
(7 भगण दो गुरू
23 वर्ण, चार चरण समतुंकात)
©️ डाॅ•निशा पारीक