वियोग श्रृंगार-दोहा

प्रीत   पगा   मन   बावरा,  देख   रहा  पथ  आज।
मिल  जाए  साजन  अभी, या  विष  पीलूँ  आज।।

बरस   रहे   है   बादरा,   या    बरसे   पिय   नैन।
पथ   जोहूँ   पथ   ना   मिले,  छायी   ऐसी   रैन।।

विकल विहग से फिर रहे,तुम बिन प्रियतम प्राण।
जीव   गए   क्या   मिलन  है, ये   कैसा   संत्राण।।

ताप तपे तन तेज  तपा, तड़पत  जल  बिन  मीन।
ज्यूँ ज्यूँ जल सूखन  लगा, त्यूँ  त्यूँ  प्राण  अधीन।।

खोयी  पिय   के   सपन   में,  भूली  सुध   बेहाल।
भूल भुलैया सी फिरूँ, बन  प्रियतम  गल  माल।।

            ©️ डाॅ•निशा पारीक 

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