अति प्यारी अतिसुंदर छवि है मनमोहन तेरे रूप की।
षोडस चन्द्रकलाएँ लज्जित निरख छवि ब्रज भूप की।।
नील वसन नीरज नयन गोवर्द्धन घन श्याम।
ब्रज मन पर बन दामिनी दमकी स्नेह ललाम।।
श्याम जूँ निहारूँ किधौ राधिका प्यारी को।
एक छवि लागे सखी एक सूँ न्यारी हो।।
पुष्प हो गुलाब से श्याम से भ्रँमर हो तुम।
तुम ही रस रूप कृष्ण नीरस भी हो तुम।।
हरित स्याम के मिलन में, सुवर्ण सजी है साथ।
प्रीत कनक सी कामिनी राधा कृष्ण के साथ ।।
देख रही थी भोर में सुंदर स्वप्न सुहान,
पीताम्बर सुघड सरल, श्यामल श्याम सुजान।
दर्शन पाकर धन्य हूँ निस दिन भोर में श्याम।
मुझे बुला लो ईश अब अपने स्नेह के धाम।।
कान्हा अधर आलोकित है बांसुरी के स्पर्श से।
जग जीवित है धुन सुनके सँग मुरली के दर्श से।।
हर गोपी तेरी प्रीत में, जोगन बन गई कान्ह।
कान्हा कान्हा रट रही, रटते हो गई कान्ह।।
अर्पित तुम्हारे चरण कमल में हृदय पुष्प हे साँवरिया।
महक बिखेरो या कुम्हला दो तुम्हें समर्पित साँवरिया।।
©️ डाॅo निशा पारीक