खुद हीं खुद में अब कहाँ हूँ मैं
जीते जीते मर चुका हूँ मैं
खुद ही खुद का ही मैं हूँ कातिल
खुद की ज़ाया का गवा हूँ मैं
मुझसे पर्दा किस लिये क्यूँ है
तेरी आंगन की हवा हूँ मैं
ज़ख़्मों को खुद भर नहीं पाता
तुम तो कहते हो दवा हूँ मैं
जाने किसकी है दुआ ‘श्रेयस”
खुद हीं खुद में बददुआ हूँ मैं
संदीप कुमार तिवारी ‘श्रेयस’