आज फिर सनम हमे उदास रहने दीजिए।

 

आज  फिर  सनम  हमे  उदास  रहने  दीजिए।
दर्द भी   सनम जिगर ‘के’  पास  रहने  दीजिए।

इश्क़-विस्क छोड़  मौत की यहीं अब शक्ल है,
जिंदगी ‘तो’ प्यास  है ‘ये’  प्यास  रहने  दीजिए।

देश   में  चुनाव  का  लिबास  है  ये  मुफ़लिसी,
आप   को  सलाह   ये  लिबास   रहने  दीजिए।

जी रहे ‘हैं’  हम कि  वो  मुझे  कहीं  है  चाहती,
दिल ‘में’ इक कयास है कयास  रहने  दीजिए।

रात   की  तिमिर   लिये  रुला  रही  है  तिश्नगी,
आप   जिस्म  का  यहाँ  उजास  रहने  दीजिए।

कौन  जी  रहा ‘है’ आज  साफ-सुथरी  जिंदगी,
कांट  पर  बबूल  के,  कपास   रहने   दीजिए।

वो नहीं मिरे सनम मिलन कि फिर भी आस है,
आस  है  कि  जी  रहें  ‘हैं’ आस  रहने  दीजिए।

कुछ नशा न हम करें, निपट न जायें  साहिबा!
छोड़िए  ‘भी’  जेब,  सौ-पचास   रहने  दीजिए।

जानवर  भरा   शहर  चलो  कहीं  ‘श्रेयस’  चलें,
आदमी ‘के’ बीच अब ‘ये’  घास  रहने  दीजिए।

                        ✍️संदीप कुमार तिवारी ‘श्रेयस’

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