अपने आँखों के मोती को चुन-चुन उठा लूं मैं।
रुकना यारों थोड़ा कुछ ‘औ’भी चोट खा लूं मैं।
मेरे पलकों के चिलमन में जो मुँह छिपाती है,
उसके जुल्फों के साये में ये सर छुपा लूं मैं।
मेरे दिल में हैं लाखों घर पर तू नहीं आना,
हर घर में ग़म ही है तुमको किस घर बुला लूं मैं।
मैं सबसे अहदो-पैमां भी करता ‘हूँ’ इस दम पर,
जब भी जी चाहे तो सबसे दामन छुड़ा लूं मैं।
तूं जिस से मुझ पे हसता वो तकदीर है मेरा,
ये मेरा साया है इसको कैसे हटा लूं मैं।
है चाहत मेरी मुझको कर ले प्यार फिर कोई,
दिल हल्का हो हिजरत में कुछ आँसू बहा लूं मैं।
रब दिल में सोले हैं, है तू हर बात से वाकिफ़,
आँखों को पानी दे हर चिंगारी बुझा लूं मैं।
कब के बिछड़े तुम प्यासे दिल के पास हो आए,
है हसरत तेरे होठों से शबनम चुरा लूं मैं।
मेरे मुंसिफ़ मेरे महमां तेरी इनायत से,
खुश होकर डर लगता है ना खुद को गवां लूं मैं।
हो ग़र ऐसा मेरे दिन आएँ फिर ‘से’ बचपन के,
छुप के दादी की बीड़ी को फिर से जला लूं मैं।
मुझको हर घर की लाचारी दिखती सियासत सी,
हूँ श्रेयस इतनी आबादी कैसे बचा लूं मैं।
संदीप कुमार तिवारी ‘श्रेयस’