किसी की याद में हम रातभर नहीं सोते।

 

कहें  कैसे  कि  मेरे  नैन  तर  नहीं  होते।
किसी की याद में हम रातभर नहीं सोते।

नहीं मालूम कब हम खुद ‘के’ दिल ‘में’ रहते हैं,
हमेशा   खुद  ‘के’   होते   हैं  मगर   नहीं  होते।

हमेशा  बच   ‘के’  राहों  पे  भला  चलें  कैसे,
जहाँ  में  हर  जगह  सच्चे  डगर  नहीं  होते।

नगर भर घूम लें पर  प्यास  भी  नहीं  होती,
जहाँ पर प्यास लगती फिर नगर नहीं होते।

हजारों   हाँथ  उठते   हैं  दुआ  ‘में’  तेरे  रब,
वही हम हैं दुआ  जिनके  असर  नहीं  होते।

‘जो’ दिल वालों ‘कि’ बस्ती में लगें ‘हो’ रहने जी,
कभी   तन्हा  ‘ही’  उनके  ये  सफ़र  नहीं होते।

जलाए कौन मेरे  दिल ‘का’  आशियां  ‘श्रेयस,
‘जो’ दिलवाले ‘हैं’ उनके भू ‘पे’ घर नहीं होते।

               ✍️संदीप कुमार तिवारी ‘श्रेयस’

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