मेरी मुझ में इजात होती है।
मेरी धड़कन ही साथ होती है।
मैं भी तन्हा कभी नहीं होता,
मेरी आईने ‘से’ बात होती है।
मुझ में मैं तो खुशी ‘से’ रहता हूँ,
तेरी यादें उदास होती हैं।
आँखें गमगीन हों ‘तो’ रो लेना,
इस से दुख की निज़ात होती है।
मेरे ग़म की किसे हुई परवा,
दिन भी होता ‘है’ रात होती है।
मैं अंधेरों ‘से’ खौफ खाता हूँ,
जब भी तारों ‘की’ बात होती है।
तुम पे हो किस लिये यकीं ‘श्रेयस’
याँ जब अपनो ‘से’ घात होती है।
©संदीप कुमार तिवारी ‘श्रेयस’