दिन की बातों पे रात टाली है।

दिन की बातों पे रात टाली है।
यूँ हर ख्यालों में बेख़याली है।

मिलता हरदम हूँ मैं हजारों से,
दिल का कमरा ये अब ‘भी’ खाली है।

हर घर में फैला है उजाला पर,
अपनी आंगन की धूप काली है।

इसकी-उसकी भी बात क्यूँ करनी,
तेरी सूरत तुमने बनाली है।

कल ही कुछ बुलबुल थें यहाँ ठहरे,
अब तो बिन पत्तों की ‘ये’ डाली है।

गुल हैं काँटों से चोट यूँ खाएं,
उजड़े गुलशन के साथ माली है।

तुमने चाहा जो है नहीं तेरा,
तेरी चाहत श्रेयस’ निराली है।

©संदीप कुमार तिवारी ‘श्रेयस’

Leave a Comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *